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राजस्थान की मरुधरा पर निर्मित नाकोड़ा तीर्थ महिमा मंडित पुण्यमयी गरिमा को लिये हुए है। यह सर्वमान्य बात है कि इस तीर्थ-स्थली पर श्रद्धालुओं द्वारा इतना कुछ न्यौछावर किया जाता है कि यहाँ की आय से न केवल अन्य छोटे-मोटे तीर्थों की व्यवस्था संचालित होती है, वरन् अनेकानेक विद्यालय, महाविद्यालय, चिकित्सालय, धर्मशालाएं भी निर्मित एवं प्रबंधित हो रही हैं। भगवान श्री पार्श्वनाथ एवं तीर्थरक्षक अधिष्ठायक श्री भैरवजी महाराज की महिमा इतनी जग-विख्यात है कि भक्तों द्वारा इन्हें 'हाथ-का- हजूर' और 'जागती ज्योत' माना जाता है। यहाँ के हजारों चमत्कारी प्रसंग हैं। यहाँ के नाम से की गयी मनोकामना पूरी होती है। आम जनता की यह मान्यता है कि यहां पर चढ़ाया गया प्रसाद तीर्थ के संभाग के अन्तर्गत ही वितरित कर देना चाहिये। तीर्थ के परिक्षेत्र से प्रसाद को कहीं और ले जाना उचित नहीं माना जाता ।
ऐतिहासिक सन्दर्भों के अनुसार नाकोड़ा का सम्बन्ध विक्रम पूर्व तीसरी शताब्दी में हुए नाकोरसेन नामक व्यक्ति से है। नाकोरसेन ने ही नाकोर नगर बसाया था, जो आगे जाकर नाकोड़ा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। नाकोरसेन ने यहाँ एक मंदिर बनवाया था, जिसकी प्रतिष्ठा आचार्य स्थूलिभद्र के करकमलों से सम्पन्न हुई थी।
नाकोड़ा तीर्थ पर कई महान् आचार्य एवं नरेश यात्रार्थ आए, जिनमें आचार्य सुहस्तिसूरि सिद्धसेन दिवाकर मानतुंगाचार्य, कालकाचार्य, हरिभद्रसूरि और राजा सम्प्रति तथा राजा विक्रमादित्य के नाम उल्लेखनीय हैं। जैनाचार्यों ने इन नरेशों के द्वारा इस तीर्थ का जीर्णोद्धार भी करवाया था। बारहवीं तेरहवीं शताब्दी में इस तीर्थ पर मुस्लिम शासकों के आक्रमण भी हुए, जिसमें मंदिरों को भारी क्षति पहुँची । पन्द्रहवीं शताब्दी में तीर्थ का पुनः निर्माण हुआ। अभी भगवान श्री पार्श्वनाथ की जो प्रतिमा प्रतिष्ठित है, उसका प्रतिष्ठापन सं. १४२९ में हुआ। एक मान्यता के अनुसार यह प्रतिमा नाकोर नगर से प्राप्त होने के कारण यह नाकोड़ा पार्श्वनाथ के रूप में प्रसिद्ध हुई, जबकि प्राचीन परम्परागत किंवदंती के अनुसार जिनदत्त नामक श्रावक द्वारा सिणधरी गाँव के पास एक सरोवर से इसे प्राप्त किया गया था और आचार्य श्रीउदयसूरि के करकमलों से इसकी प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी।
यहाँ के जो प्रगट प्रभावी अधिष्ठायक देव श्री भैरवजी महाराज हैं, उनकी स्थापना सं. १५११ में आचार्य कीर्तिरत्नसूरि द्वारा की गई थी। नाकोड़ा भैरव की स्थापना के बाद तीर्थ की निरंतर समृद्धि होती
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नाकोड़ा तीर्थ मूल मंदिर दर्शन
पर्वतावली की गोद में शांतिनाथ मंदिर की स्तंभावली
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मंदिर के शिखरों में से एक
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