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________________ ही एक संगमरमर का विशाल हाथी है, जिस पर आदिनाथ की माता मरुदेवी की मूर्ति है। यह हाथी उस ऐतिहासिक प्रसंग की याद दिलाता है, जिसमें मरुदेवी, हाथी पर ही परम ज्ञान प्राप्त कर लेती है। यहीं पास में एक तलघर है। संकट काल में परमात्मा की प्रतिमाओं को इसी तलघर में छिपाकर रखा जाता था। मूल गर्भ गृह की दाहिनी ओर तीर्थंकर पार्श्वनाथ की एक ऐसी मूर्ति है जिसके सिर पर एक हजार नागफण है। ऐसी मूर्ति सम्पूर्ण भारत में एक ही है । इस मूर्ति की प्रमुख विशेषता यह है कि सभी सर्प एक दूसरे में गुंथे हुए हैं एवं उनका अन्तिम भाग अदृश्य है। यहाँ परिकल्पित गुम्बजों में एक गुम्बज ऐसा भी है जिसे अगर ध्यान से न देखा गया तो दर्शक उस गुम्बज को मन्दिर की कला-समृद्धि में बाधक मानेगा मन्दिर के ऊपरी भाग में निर्मित यह गुम्बद वास्तव में शंख-मंडप है। उसमें ध्वनि तरंग के विज्ञान को उपस्थापित किया गया है। गुम्बज के एक छोर में एक शंख बना हुआ है, जिसमें प्रसारित होने वाली अनुगूंज को सम्पूर्ण गुम्बज में तरंगित दिखाया गया है। मंदिर के वर्गाकार गर्भगृह से अगर अध्ययन प्रारम्भ किया जाये तो मंदिर की एक सुस्पष्ट ज्यामितीय क्रमबद्धता दिखाई देती है । चूंकि मंदिर पश्चिमवर्ती पहाड़ी की ढलान में स्थित है । अतः मंदिर के अधिष्ठान के भाग को पश्चिम दिशा में पर्याप्त ऊंचा बनाया गया है। लगभग ६२x६० मीटर लंबे-चौड़े क्षेत्रफल के ढलान के चारों ओर की दीवार मंदिर की ऊंचाई की बाह्य संरचना में मुख्य भूमिका रखती है। मंदिर के चार प्रवेश-मंडप दो तल के हैं और तीन ओर की भित्तियों से घिरे हैं। मनोहारी प्रवेश-मंडपों में सबसे बड़ा मंडप पश्चिम की ओर है जो मुख्य प्रवेश मंडप है। मन्दिर के परिकर में छः देव कूलिकाएं है जिन पर छोटे-छोटे शिखर हैं। ये शिखर मन्दिर की शोभा में चार चाँद लगा रहे हैं। मन्दिर का शिखर तीन मंजिल का है जो झीनी-झीनी और सुकुमार कोरणी से मन्दिर की शोभा बढ़ा रहा है। मन्दिर के उत्तुंग शिखर पर लहराता ध्वज, संसार को शान्ति एवं प्रेम का सन्देश देता है। पूर्णिमा की चाँदनी में इस मन्दिर का अवलोकन और भी आह्लाद वर्धक है। यहां तीन मन्दिर और हैं, जिनमें दो तीर्थंकर पार्श्वनाथ के हैं एवं एक भगवान सूर्य देव का । यदि मन्दिर के सम्पूर्ण परिसर को एक ही वाक्य में अभिव्यक्ति देनी हो, तो कहना होगा कि राणकपुर का मन्दिर पाषाण में मूर्त कल्पना है । इतिहास, शिल्प-कला एवं प्राकृतिक परिवेश इस स्थान को भारतीय पर्यटन एवं आराधना- स्थलों का सिरमौर साबित करते हैं। अमेरिका के विश्व मान्य स्वपति लुई जूहान के अनुसार स्थापत्य कला एवं आध्यात्मिकता की यह एक आश्चर्यजनक अभिव्यक्ति है । 12 For Private & Pal Use Only परिकर में परिकल्पित देवांगना कीचक : पंचदेही योद्धा sy org
SR No.003646
Book TitleVishva Prasiddha Jain Tirth Shraddha evam Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1996
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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