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बाहुबली पर नीर-क्षीर- चंदन का किया जा रहा अभिषेक उनके माथे से सीधा जमीन पर ढरा चला जा रहा था। मस्तक पर डाला गया नीर-क्षीर जब तक चरणों का स्पर्श न कर ले प्रतिष्ठा अपूर्ण कहलाती है । लाख कोशिश के बावजूद जब यह कार्य संपन्न न हुआ, तो अन्त में अज्जिकागुली नामक एक निर्धन महिला को इस अधूरी रह रही प्रतिष्ठा को पूर्ण कराने का गौरव प्राप्त हुआ । दूर गांव से पत्तों के दौनों में लाये गये शुद्ध दूध को भगवान ने स्वीकार किया। इस अहो भावपूरित घटना की स्मृति में अज्जिकागुली की प्रतिमा भी यहाँ बनाई गई।
विंध्यगिरी पर्वत के सामने ही चंद्रगिरी पर्वत है। विध्यगिरी पर कुल सात मंदिर हैं, जबकि चंद्रगिरी पर्वत पर कुल चौदह मंदिर हैं। कहा जाता है कि लगभग २००० वर्ष पूर्व आचार्य भद्रबाहु स्वामी के साथ सम्राट चंद्रगुप्त भी यहां आये थे। सम्राट ने तपस्या करते हुए यहीं पर अपना समाधिमरण लिया। इसी से इस पर्वत का नाम चंद्रगिरी पर्वत पड़ा। यहां भगवान आदिनाथ का प्राचीनतम मंदिर है। आचार्य भद्रबाहु स्वामी की पादुकाएं है। एक अधघड़ी मूर्ति भी है, जो भगवान आदिनाथ के पुत्र चक्रवर्ती भरत की कही जाती है। श्रवणबेलगोला में एक जैन मठ भी है, यहां नवरत्नों की दिव्य सतरह प्रतिमाएं भी देखने को मिलती है।
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बाहुबली : संसार की सबसे बड़ी प्रतिमाओं में एक
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