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वहाँ ढूंकों का निर्माण करवाया गया। इसकी प्रतिष्ठा सं. १८२५ माघ शुक्ला तृतीया को आचार्य श्रीधर्मसूरि के करकमलों से हुई। इसी जीर्णोद्धार कार्य के अन्तर्गत ही पहाड़ पर जल-मंदिर, मधुवन में सात मंदिर, धर्मशाला व पहाड़ के क्षेत्रपाल श्री भोमियाजी के मंदिर का भी निर्माण हुआ एवं प्रतिष्ठा हुई। ___सं. १९२५ से १९३३ तक इस तीर्थ का पुन: जीर्णोद्धार का कार्य हआ। इस जीर्णोद्धार के अन्तर्गत ही भगवान आदिनाथ, भगवान वासुपूज्य, नेमिनाथ, महावीर तथा शाश्वत जिनेश्वर श्री ऋषभानन, चंद्रानन, वारिषेण, वर्धमान आदि की नई देहरियों का भी निर्माण हुआ।
कालचक्र के प्रवाह में पर्वत पर एक संकट और आया। पालगंज राजा ने पहाड़ विक्रय की सार्वजनिक घोषणा की। सूचना पाकर कलकत्ता के रायबहादुर श्री बद्रीदास जौहरी एवं मुर्शिदाबाद के श्री बहादुरसिंह दूगड़ ने भारतीय स्तर की श्वेताम्बर संस्था आनन्द जी कल्याण जी की पेढ़ी को यह पहाड़ क्रय करने का संकेत दिया। दोनों पुण्य पुरुषों के सक्रिय सहयोग से पेढ़ी ने यह पहाड़ ९.३.१९१८ को २४२२०० रुपये में क्रय कर लिया और सुचारू रूप से तीर्थ का विकास प्रारम्भ हुआ।
साध्वी श्री सुरप्रभा श्री के अथक प्रयासों से सं. २०१२ में इस तीर्थ का पुन: जीर्णोद्धार प्रारम्भ हुआ, जो सं. २०१७ में पूर्ण हुआ। यह इस तीर्थ का तेइसवां उद्धार था। आज हम तीर्थ पर जो कुछ देख रहे हैं वह इसी जीर्णोद्धार कार्य का अन्तिम रूप है।
इस पावन तीर्थ की यात्रा संकटहारी, पुण्यकारी और पापनाशिनी है । भोमिया बाबा के मंदिर में धोक लगाकर यात्रा प्रारम्भ की जाती है। लगभग ३ कि. मी. की चढ़ाई चढ़ने पर गंधर्वनाला आता है। यहां यात्रीगण कुछ समय के लिए विश्राम करते हैं। यहीं 'भाताघर' भी है जहां वापसी में लोग नाश्ता करते हैं । यहाँ से करीब २ कि. मी. एवं ५०० सीढ़ियां चढ़ने पर समतल भूमि आती है। यहां चारों ओर तीर्थंकरों की ढूंकें बनी हुई हैं।
पहली ट्रॅक गणधर गौतम स्वामी की है । इसमें चौबीस तीर्थंकर और दस गणधर की चरण पादुकाएं विराजित हैं। इनमें श्यामवर्णीय चरण गौतम स्वामी के हैं । इनकी प्रतिष्ठा सं. १८२५ में हुई थी। यहां से कुछ कदम दूरी पर ही श्री कुंथुनाथ की ट्रॅक है। जिसकी प्रतिष्ठा सं. १८२५ में हुई थी।
कुंथुनाथ भगवान की ट्रंक के पास ही श्री ऋषभानन शाश्वत जिन की ट्रॅक है। पास में ही चन्द्रानन शाश्वत जिन की ट्रंक है। इसी के निकट पांचवी ट्रॅक तीर्थंकर श्री नमिनाथ की है।
छठी ट्रॅक तीर्थंकर अरनाथ की है। प्रभु ने यहां मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी को निर्वाण प्राप्त किया था। यहाँ विराजित चरण पादुकाएं सं. १८२५ माघ शुक्ला ३ को प्रतिष्ठित हुई हैं।
तीर्थंकर अरनाथ की ढूंक के पश्चात् तीर्थंकर श्री मल्लीनाथ की ट्रॅक है। यहाँ चरण-स्थापना सं. १८२५ में हुई थी। इसके आगे आठवी ट्रंक तीर्थंकर श्री श्रेयांसनाथ की है । यहाँ पर भी चरण-स्थापना सं. १८२५ में ही हुई थी।
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