SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पावापुरी जैन धर्म के कल्याणक स्थलों में सर्वाधिक प्रिय है। यह वह महान् पावन भूमि है, जहां जैन धर्म के चरम तीर्थंकर भगवान श्री महावीर स्वामी का महानिर्वाण हुआ था। पावापुरी की माटी को ही यह महान सौभाग्य प्राप्त हुआ है, जहां भगवान ने अपनी प्रथम देशना दी । महामुनि इन्द्रभूति गौतम जैसे महापुरुषों को तत्त्वबोध प्रदान किया। यह भी एक महान संयोग की ही बात है कि भगवान ने अपने देहोत्सर्ग के लिए भी पावापुरी की पावन भूमि का ही चयन किया। भगवान ने अपने निर्वाण से पूर्व सोलह प्रहर तक अनवरत देशना दी। सचमुच, बिहार भारत का वह सौभाग्यशाली राज्य है, जहाँ भगवान महावीर और बुद्ध जैसे अमृत-पुरुषों का अवतरण कैवल्य और महापरिनिर्वाण हुआ । पावापुरी और राजगृह दोनों करीब ही हैं ये दोनों ही स्थल भारतवर्ष के पावनधाम हैं यहाँ की यात्रा भगवान महावीर और बुद्ध के चरण स्पर्शित कल्याणक-भूमि की यात्रा है। जैन धर्म की यह मान्यता रही है कि दीपावली पर्व का शुभारम्भ भगवान महावीर के निर्वाण के बाद यहीं से हुआ था। दीपावली के प्रवर्तन के रूप में पहले दीप को प्रज्वलित करने का सौभाग्य इसी पावापुरी की पावन माटी को प्राप्त हुआ । भगवान महावीर के महानिर्वाण के बाद जिस स्थल पर उत्सर्ग देह का अंत्येष्टि-संस्कार हुआ, वहाँ की माटी को शीष पर धारण कर लोग अपने घरों में लेकर गये तथा अपने पूजा-स्थलों में अधिष्ठित किया। बूंद-बूंद कर कलश भरता है, वहीं बूंद-बूंद कर कलश रिसता है। भले ही लोग दो-दो चार-चार ब्यूटी ही माटी लेकर गये होंगे, पर अगर हजारों-हजार लोग यह भूमिका अदा करें तो उस स्थान का गड्ढा हो जाना आश्चर्यजनक नहीं है। भगवान महावीर के अग्रज भाई नरेश नंदीवर्द्धन ने उस स्थान पर एक जलाशय और मध्य में मंदिर का निर्माण करवाया, जो कि जल-मंदिर के रूप में विख्यात हुआ। मंदिर भले ही बहुत बड़ा न हो लेकिन कमल के फूलों से घिरे जलाशय के बीच निर्मित यह मंदिर बेहद सुरम्य और नयनाभिराम लगता है। प्रतिवर्ष हजारों-लाखों लोग इस जल-मंदिर में आकर भगवान श्री महावीर को अपनी श्रद्धाभरी पुष्पाजंलि अर्पित करते हैं। जल मंदिर में गर्भगृह के अन्दर भगवान श्री महावीर की प्राचीन चरण-पादुकाएं प्रतिष्ठित हैं। इन चरणों के पास दस मिनट के लिए बैठना भी भव-भव के पाप को नष्ट करने के लिए पर्याप्त है। यह स्थल भगवान महावीर की आभामंडल से इतना ऊर्जस्वित है कि यहाँ आना Jain Education International 116 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003646
Book TitleVishva Prasiddha Jain Tirth Shraddha evam Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1996
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy