SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मंदिर का हिमालयी शिखर पालीताना श्रद्धा और कला की दृष्टि से जैन-धर्म का सर्वोपरि तीर्थ-स्थल है। देश के हर राज्य में जैन-धर्म के पावन तीर्थ-स्थल हैं, किन्तु हर तीर्थ की नाक पालीताना की ओर है। यहां अनगिनत सन्तों, महात्माओं और श्रावकों ने महानिर्वाण को उपलब्ध किया है। इस तीर्थ के कण-कण में समाधि और कैवल्य की आभा है। यहां का कंकर-कंकर शंकर है । इस तीर्थ की माटी का हर कण अपने-आप में एक पवित्रतम मंदिर है। यहां की माटी को अपने शीष पर चढ़ाना भव-भव के पापों को नष्ट कर डालने का आधारभूत अनुष्ठान है। कहा जाता है पालीताना की मिट्टी को अपने शीष पर चढ़ाने के लिए देवतागण भी तरसते हैं । मनुष्य तो क्या, देव भी कृत्-कृत्य हो जाते हैं, यदि उन्हें पालीताना तीर्थ की यात्रा का अवसर मिल जाये। वस्तुत: पालीताना तो वह तीर्थ है, जहां देवों का दिव्यत्व हर दिशा में देखा जा सकता है। किसी के मन में चाहे कैसी भी चिंता क्यों न हो. पालीताना वह धाम है जहाँ श्रद्धालु हर चिंता से मुक्त, निश्चिन्त हो जाता है। शायद ही ऐसा कोई जैन हो जिसने जीवन में पालीताना की एक बार यात्रा न की हो । यह माना जाता है कि जिसने पालीताना और सम्मेत शिखर इन दो तीर्थों की यात्रा न की, उसका जैन कुल में जन्म लेना व्यर्थ गया। जैन-धर्म का सर्वाधिक सर्वोपरि तीर्थ स्थल होने के कारण यहाँ तीर्थ यात्रियों की सदा भरमार रहती है। इस तीर्थ की दिव्यता और भव्यता का लेखा-जोखा संसार के हर राष्ट्र तक पहुँचा हुआ है। सामान्य तौर पर पर्यटक घूमने के लिए भारत आया करते हैं, किन्तु पालीताना वह पावन धाम है, जहां अपने श्रद्धा-सुमन समर्पित करने के लिए पर्यटक यहाँ पहुँचते हैं। पालीताना जैन धर्म के पूज्य साधु-साध्वीवंद का सबसे बड़ा केन्द्र-स्थल है। शायद ही अन्य कोई ऐसा नगर या तीर्थ हो, जहाँ जैन साधु-साध्वियों की इतनी विपुल संख्या मिलती हो । साधु-साध्वी स्वयं एक जंगम तीर्थ है, इस दृष्टि से पालीताना की यात्रा जंगम और स्थावर दोनों दृष्टि से महान् पुण्यकारी मानी जाती है। इस तीर्थ पर जिधर भी नजर घुमाओ, वहां मंदिर या धर्मशालाएं ही दिखाई देती हैं। सैकड़ों मंदिर और सैकड़ों धर्मशालाएं इस तीर्थ की विशेषताओं में प्रमुख है । पालीताना नगर के करीब ५ कि. मी. के प्रमुख मार्ग पर धर्मशालाओं और विश्राम-स्थलों की लम्बी कतार है। मार्ग में ठौर-ठौर पर पावन जिनालय भी निर्मित हैं, लेकिन जिसे हम तीर्थ कहें उसका प्रारंभ पालीताना की तलहटी से होता है । इस तलहटी गगनचुम्बी शिखर मंदिर ही मंदिर 94
SR No.003646
Book TitleVishva Prasiddha Jain Tirth Shraddha evam Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1996
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy