________________
प्रकाशकीय
'विश्व प्रसिद्ध जैन तीर्थ : श्रद्धा एवं कला' ग्रन्थ में भारत के चौदह जैन तीर्थों के उत्कीर्ण कलापक्ष को प्रस्तुत किया गया है। यह ग्रन्थ न केवल हमारी श्रद्धा का केन्द्र है, अपितु कला की दृष्टि से अपने आप में अनुपम बेमिसाल है। इसमें तीर्थकर परमात्मा की पावन प्रतिमाएं और तीर्थों के बाह्य स्वरूप को तो दिया ही गया है, तीर्थों के आन्तरिक वैभव को भी दर्शाया गया है।
तीर्थ और मन्दिर हमारी श्रद्धा के पूज्य केन्द्र हैं। हमारे पूर्वजों ने पालीताना, गिरनार, आबू, राणकपुर, जैसलमेर, नाकोड़ा, सम्मेतशिखर, पावापुरी, श्रवणबेलगोला, शंखेश्वर, महावीरजी आदि तीर्थों में इतने भव्य मन्दिर बनवाये हैं। कि देश-विदेश के पर्यटक देखते ही विस्मित हो उठते हैं । ओह, जैन मन्दिरों में कला का इतना जीवन्त रूप ! सचमुच हमारे मन्दिरों में पत्थर भी श्रद्धा और कला की भाषा बोलते हैं। ये मन्दिर हमारी भक्ति-भावना के जीवन्त महाकाव्य हैं।
सम्पूर्ण ग्रन्थ रंगीन है और मुद्रण-प्रकाशन अत्यन्त कलात्मक एवं सुन्दरतम हआ है । कागज और छपाई की श्रेष्ठता के साथ प्रस्तुतीकरण की भव्यता का विशेष ध्यान रखा गया है । इस अनुपम ग्रन्थ का आलेखन महोपाध्याय ललितप्रभ सागर जी जैसे महामनीषी ने किया है और स्लाइड्स फोटोग्राफी सिद्धहस्त छायाकार श्री महेन्द्र भंसाली ने की है। पूज्य श्री ललितप्रभ सागर जी ज्ञान-चेतना सम्पन्न कर्मठ संत-पुरुष हैं। उनका वैदुष्य और ओजस्विता जग जाहिर है।
प.पू. गणिवर श्री महिमाप्रभ सागर जी के सन् १९९५ के जोधपुर-चातुर्मास के दौरान उनकी पावन प्रेरणा से प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रकाशन-कार्य उठाया गया।
For Private
PE
U se Only