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________________ पंचपाण्डवरमलै :- आर्काड शहर से दक्षिण-पश्चिम में छह किलोमीटर दूरी पर पंचपाण्डवरमलै नाम का छोटा सा पहाड़ है। तमिल में मलै का अर्थ पहाड़ है। पंचपांडवों के साथ इसका कोई संबंध नहीं दिखता । इसका दूसरा नाम तिरुप्पामलै है । इस पहाड़ के पूर्व भाग में बारह स्तम्भों से युक्त छह कक्ष हैं । इस गुफा के ऊपर एक चट्टान पर ध्यानस्थ जैन मूर्तियां है । दक्षिण भाग में स्वाभाविक एक गुफा है। पास में पानी का एक कुण्ड है। इस पहाड़ पर जो मूर्तियां दृष्टिगोचर है उनमें साधु की और यक्षणी की सामने दिखाई देती है । साधु का नाम नागनन्दी मालूम होता है। इन सभी आधारों से पता चलता है कि एक जमाने में यह पहाड़ श्रमण साधुओं का निवास स्थान था । इसमें कोई शक नहीं है । यहाॅ पर श्रमण साधुगण तप किया करते थे । इस बात को यहाॅ का शासन निःसन्देह बतला देता है । यह निर्जन प्रदेश है । साधु-संतों के अनुकूल एकान्त स्थान है। सैकड़ों मुनिराज यहाॅ तप किये होंगे, आज यह निर्जन है, यहाॅ त्यागी आश्रम व धर्मशाला बनाई जा सकती है । वन्दवासी संभाग- उत्तर आर्काट जिला इतिहास, संस्कृति और धर्मायतनों के पुष्ट आधार पर यह क्षेत्र अत्यन्त महत्वपूर्ण है । इसके अन्तर्गत छोटे-बड़े लगभग ३० तीर्थ क्षेत्र आते हैं। यह १२५ से १५० किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है । यहाँ के पर्वत और गुफाएँ भी अत्यन्त प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में जागृति तुलनात्मक स्तर पर अधिक है । अनेक संस्थाएँ और अध्ययन केन्द्र भी हैं। इस चक्र के अन्तर्गत लगभग ३५ क्षेत्र आते हैं। सर्वत्र दिगम्बर जैन परिवारों की संस्था पर्याप्त है, रुचिपूर्वक धार्मिक कार्यों में भाग लेते हैं । I वन्दवासी :- इस नगरी में एक चैत्यालय है। मूल नायक महावीर स्वामी है । श्वेत पाषाण की प्रतिमा है । अंबिकादेवी प्रतिष्ठित है। मंदिर नया है । यहाँ १५० जैन परिवार है। 1 सात मंगलम् :- ग्राम वन्दवासी से ५ किलोमीटर की दूरी पर है। यहाॅ १५०० वर्ष पूराना भव्य चन्द्रप्रभ जिनालय है । सुन्दर, विशाल मानस्तम्भ है। आठ शासन देव-देवियां हैं, पूजा, भजन आदि होते रहते हैं । जीर्णोद्धार आवश्यक है । यहाँ ६० श्रद्धालु जैन परिवार निवसित हैं 1 नरकोइल - अतिशय क्षेत्र :- पोन्नूर गाँव से लगी हुई एक पहाड़ी पर प्राचीन आदिनाथ जिनालय भग्नावस्था में हैं। एक छोटे कमरे में सभी मूर्तियाँ रख दी गई हैं। इस क्षेत्र के उद्धार के कुछ प्रयत्न हुए पर अभी अनेक प्रकार का काम होना शेष है। पूरा सर्वे होना चाहिए । समीप ही अनेक तीर्थंकरों की भग्न मूर्तियाँ हैं । Jain Education International 55 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003645
Book TitleTamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2001
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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