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________________ खोदो, भगवान् हैं । मंदिर बनवाने पर तुम्हारी दृष्टि लौट आयेगी, ऐसा ही हुआ। ऐसी और भी अनेक चमत्कारी घटनाओं का इस जिनालय से सम्बन्ध हैं । दर्शनार्थी जैन-अजैन आते ही रहते हैं। यहाँ वार्षिक विशाल मेला लगता है । पोंगल धूमधाम से मनाते हैं । जीर्णोद्धार की बड़ी जरूरत है, उचित सुरक्षा और मरम्मत के अभाव में यह प्रसिद्ध क्षेत्र धीरे-धीरे कमजोर होता जा रहा है। यह उत्तर भारत के चम्पापुर और नैनागिर की समता का क्षेत्र है । ऐसे पवित्र और महान् क्षेत्रों की रक्षा करना हम आस्थिक जैनों का परम कर्तव्य है। इससे अपार पुण्यबंध होता है । आरणी :- यहाँ पर्याप्त प्राचीन एवं भव्य आदिनाथ जिनालय है । विशाल सभा मंडप और मान-स्तम्भ है, दो वेदियां हैं, छह शासन देवी-देवताओं की मूर्तियां है। यहाँ अभिषेक एवं पूजन नियमित रूप से होता है । यहाँ पूजन आदि शाम के समय सम्पन्न होते हैं । ४० श्रद्धालु जैन परिवार है। वल्लिमलै :- यह स्थल नार्थ आर्काड जिला, गुडियात्तम तालुका मेलपीडि नाम के गाँव के पास है । इस गाँव का छोटा सा पहाड़ पत्थर से भरा है। इसकी पूर्व दिशा में स्वाभाविक एक गुफा है । उसके बगल में दो पंक्ति में जैन मूर्तियां उत्कीर्ण की हुई है। इसके नीचे कन्नड़ लिपि में कुछ लिखा हुआ है। इससे पता चलता है कि इस गुफा को राजमल्ल नाम के गंगकुल नरेश ने बनवाया था तथा अज्जनन्दी भट्टारक द्वारा ये मूर्तियाँ बनवायी गई थी। _यहाँ की जैन मूर्तियां और शिलाशासन से पता चलता है कि यह स्थान जैनियों का था और आसपास के गाँवों में अनेक जैन लोग निवास करते थे किंतु आजकल कोई भी जैन नहीं है। वर्तमान में इस स्थल पर अजैन लोगों ने अतिक्रमण कर लिया है। यहाँ जीर्णोद्धार करा सकते हैं व त्यागी भवन बना सकते हैं । 54 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003645
Book TitleTamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2001
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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