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________________ पाण्डव लोग आये थे। उनके दर्शनार्थ नेमिनाथ भगवान् की मूर्ति बनवाई गई थी। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि यह चतुर्थ कालीन अतिशय तीर्थ क्षेत्र है। यह केन्द्र सरकार के अधीन है । सारी व्यवस्था ‘आरकोलाजिकल डिपार्टमेंट' ही करता है । अवश्य दर्शन करने योग्य पवित्र स्थल है। एक-एक कण मुनिराजों के चरण स्पर्श से पवित्र है । जलवायु अनुकूल है। यहाँ हर साल संक्रान्ति के तीसरे दिन भगवान् नेमिनाथ का विशेष रूप में अभिषेक होता है। उस समय हजारों जैन लोग शामिल होकर धार्मिक कार्यक्रम की शोभा बढ़ाते हैं । यहाँ जैनों के घर अभी नहीं है । फिलहाल दो साल के पहले यहाँ पर श्रवणबेलगोला के भट्टारक श्रीचारुकीर्ति महाराज ने एक मठ की स्थापना की थी। उसकी गद्दी पर अपने शिष्य धवलकीर्तिजी को दीक्षा देकर आसीन किया । भट्टारक धवलकीर्तिजी बड़े होशियार नवयुवक है । संस्कृत, हिन्दी, तमिल, कन्नड आदि कई भाषाओं के जानकार है । ज्योतिष, वास्तुकला में निपुण हैं तथा प्रतिष्ठाचार्य भी हैं । अच्छे व्याख्याता है। इनके कारण क्षेत्र की अभिवृद्धि खूब हो रही है । क्षेत्र आरकालोजिकल डिपार्टमेंट के अधीन होने के कारण क्षेत्र का जीर्णोद्धार कार्य पूर्ण रूप से नहीं हो पा रहा है। डिपार्टमेंट से परमिशन लेने की कोशिश कर रहे हैं । आसानी से नहीं मिल रही है । क्षेत्र के लिए दस एकड़ जमीन खरीद ली गई है । विद्यार्थियों को भोजन-आवास आदि के साथ शिक्षा दी जा रही है । भट्टारकजी उत्साह के साथ कार्य कर रहे हैं । समाज में उनकी प्रतिष्ठा है । नेमिनाथ भगवान् की कृपा से उनको दीर्घायु और आरोग्य प्राप्त हो । आप तीर्थ संरक्षिणी महासभा के धर्म संरक्षक भी है। प्रत्येक तीर्थस्थल अरिहन्ततीर्थकर - केवली के समवशरण का लघु रूप होता है । यह भाव मन में रखकर वंदना और तीर्थ सेवा करना चाहिए । भाव सहित तीर्थों की वंदना करना नर जन्म की बहुत बड़ी सफलता है। सरकार के साथ-साथ हमें भी इस क्षेत्र के विकास के लिए कुछ न कुछ करते रहना चाहिए । विडाल :- यह नॉर्थ आर्काड जिले में है । यहाँ दो छोटे से पहाड़ पर स्वाभाविक दो गुफाएँ हैं । गुफा के सामने दो मण्डप है। यहाँ के शासन से पता चलता है कि एक मण्डप पल्लव राजा के द्वारा और दूसरा मण्डप चोल राजा के द्वारा बनवाया गया था। मालूम होता है कि इन गुफाओं में पूराने जमाने में मुनि लोग निवास करते थे। एक बात यह भी ध्यातव्य है कि गुणकीर्ति भट्टारक की शिष्या कनकवीरकुरत्ति नाम की आर्यिका ने अपनी शिष्याओं को यहाँ रहने की व्यवस्था की थी। एक जमाने में यह मुनि और साध्वियों का निवास स्थान होने के कारण अत्यन्त पवित्र तथा स्वाध्याय एवं साधना का केन्द्र माना जाता था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003645
Book TitleTamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2001
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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