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चेंगलपट्टु सर्किल (चेंगलपट्टू जिला)
उत्तरमेरूर :- यह छोटा सा शहर है । इसके सुन्दरवरदपेरुमाल (अजैन) मंदिर में भगवान् ऋषभदेव की मूर्ति है । प्राचीनकाल में यहाॅ जैन लोग निवास किया करते थे ।
अनन्दमंगल :- यह ओलक्कूर रेल्वे स्टेशन से पॉच मील दूरी पर है। इस गाँव में चट्टान है जिसमें जैन मूर्तियां उत्कीर्ण की हुई है। उनमें भगवान् अनन्तनाथ की मूर्ति भी है । आश्चर्य की यह है कि भगवान् के नाम से यह गॉव प्रसिद्ध है । १६३८ वर्ष पूर्व (ई.६४५) का लिखा गया शिलालेख है । उससे मालूम होता है कि यहाॅ जिनगिरि नाम की पाठशाला थी। विनयभासुर गुरु महाराज के शिष्य एवं वर्द्धमान महाराज के नेतृत्व में साधु-संतों की आहार व्यवस्था होती थी । अब यहाॅ जैन नहीं है । आसपास के गॉव से जैन लोग यहाॅ आकर पौष माह में पूजा करते हैं
सिरुवाक्कं :- यहाँ का जिनमन्दिर गिरा पड़ा है। यहाॅ के शिलालेख में लिखा हुआ है कि जिनमन्दिर का नाम श्रीकरणपेरुपल्लि था । इसके लिये जमीन दान में दी गई थी ।
कांजीवरम् :- लगभग दो हजार वर्षो से प्रयाग, वाराणसी, मथुरा, अवन्तीपुरी और कांची नगरी भारत की धार्मिक एवं सांस्कृतिक राजधानी के रूप में प्रख्यात रही है। इनमें कांची (तमिलनाडु) की प्रसिद्धि भी अनोखी रही है। इस नगरी में जैन, बौद्ध, वैष्णव और शैव धर्मो ने अपनी-अपनी एक स्वतंत्र कांची की स्थापना की। सैकड़ों वर्षों तक इन सब में धार्मिक, सांस्कृतिक सौमनस्य रहा। धीरेधीर पारस्परिक वैमनस्य के कारण और नृपतियों के संरक्षण के अभाव के कारण बौद्ध और जैन कांची की प्रसिद्धि और लोकप्रियता कम होती गयी। आज की जैन कांची और प्राचीन जैन कांची में
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