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________________ सम्पादकीय अपनी सच्ची अस्मिता में समाचार पत्र जनवाणी और जिनवाणी की आकांक्षाओं और देशनाओं का प्रतिनिधि होना चाहिए । यह लघु स्मारिका इस दिशा में एक प्रयास है। सच्चे देव, शास्त्र और गुरु के संरक्षण और अनुसरण से ही धर्म गतिशील रहता है। आज सच्चे देव अर्थात् अरिहन्त परमेष्ठी के परोक्ष प्रतिबिम्ब तीर्थ स्थल सर्वत्र क्षयिष्णु स्थिति का सामना कर रहे हैं । प्रान्तीय एवं केन्द्रीय सरकारों का इस दिशा में उत्साह सीमित है । तब यह विनाशलीला हम मूक दर्शक बनकर देखते रहें या फिर अपनी अन्तरात्मा में प्रवेश करें, जागृत हों और युद्धस्तर पर अपने कर्तव्य का पालन करें । कोई भी जाति पुरुषार्थ, त्याग और संगठन से पहचानी जाती है। आज समस्त देश के तीर्थस्थलों विशेषतः तमिलनाडु के धर्मस्थलों की मरम्मत और सुरक्षा का सवाल विस्फोटक स्थिति में है । समस्त दिगम्बर जैन समाज को तन-मन-धन से जुटना ही होगा। यह स्मारिका अपनी लुघता के साथ यही एक मात्र निवेदन लेकर आपके कर कमलों में आ रही है। हम इस स्मारिका के प्रकाशन में सभी विज्ञापनदाताओं के एवं इसमें सहयोग करने वाले समाज के समस्त सदस्यों के हृदय से आभारी हैं, जिनकी सद्भावना से यह स्मारिका आपके कर कमलों में प्रस्तुत करने में समर्थ हो सके हैं 1 सम्पादक मंडल पंडित मल्लिनाथ शास्त्री डॉ. रवीन्द्रकुमार जैन एम. ए., पी-एच.डी., डी. लिट्. महेन्द्रकुमार धाकड़ा अनिलकुमार कासलीवाल Jain Education International 14 For Private & Personal Use Only राजकुमार बड़जात्या जयचन्दलाल बाकलीवाल ज्ञानचन्द झांझरी www.jainelibrary.org
SR No.003645
Book TitleTamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2001
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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