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स्कूटर के नीचे नाग की मृत्यु हो गई, उसी समय नागिन क्या चुप बैठेगी,नहीं ! मृत्यु का बदला लेने के लिए उस स्कूटर का पीछा करेगी और स्कूटर वाले को मार डालेगी, इसका कारण यह है कि नाग के प्रति होने वाले आघात से स्कूटर वाले के प्रति द्वेष हो गया । अतः इससे सिद्ध होता है मोह वैर एवं द्वेष का भी उत्पादक है। इसके साथ ही यह मोह अंहकार (मान) का भी जन्मदाता है। जैसा कि अपना शरीर सुन्दर है और शरीर के प्रति मोह है तो हमें निश्चित रूप से अहं भाव पैदा होता है कि अरे मेरे जितना सुन्दर शरीर और किसी का नहीं है। मोह लोभ का भी कारण है, जैसा कि धन से हमार स्नेह है तो धन को संग्रह करने की इच्छा होती है। अतः धन संग्रहित कने का भाव ही लोभ है और लोभ ही पाप का बाप है । लोभ पाप को जन्म देता है और पाप दुःख के सिवाय अन्य क्या दे सकता है ? उपर्यक्त बातों से सिद्ध होता है कि मोह से चारों कषायों की उत्पत्ति होती है। कषाय आत्मा को कलुषित करती है। आत्मा का परिणाम कलुषित होने से पाप बंध भी होगा । पाप बंध होने से पाप उदय में भी नियम से आयेगें और पापोदय से दुःख प्राप्त होगा। अतः जहाँ से भी देखों, किसी भी नियम से देखो, मोह जो है वह दुःख का ही कारण है और हम दुःखी मोह के कारण ही हो रहे हैं और सारा दुःख का खजाना मोह ही है । अतः मोह का जितना बने उतना त्याग करने का प्रयत्न करें । मोह से रहित होकर सुखानुभव का प्रत्येक जीव अनुभव करे इसी पवित्र भावना के साथ विराम लेता हूँ।
जय महावीर !
जिन मंदिर हमारे जिन धर्म की अनादिकाल की
परम्परा को बताने वाले है । - पूज्य आर्यिका श्री सुपार्श्वमती माताजी
जैन धर्मके तीर्थों एवं मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए चिंतन करे तभी हमारी संस्कृति सुरक्षित रह सकती है।
- पूज्य आचार्य श्री वर्धमानसागरजी म.
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