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________________ बहुत पूराना है । तंजाऊर जिले में मुगलों के समय ही ज्यादा कलह हुआ था । न जाने यह मन्दिर कैसे बच गया है। कहते हैं यहाँ लव-कुश ने आकर पूजा की थी। अतः मुनिसुव्रतनाथ भगवान् के समय का यह मन्दिर है। दीपंगुडी :- यह नन्निलं तालूका में है। यह भी एक जैन लोगों का मुख्य स्थल है। यहाँ 'जयंगोण्डार' नाम के कविवर ने 'दीपंकुडिपत्तु' के नाम से अत्यन्त भावपूर्ण भक्तिरस युक्त दस पद्यों की रचना कर , भगवान् के महात्म्य को मुखरित किया है। यह दसों पद्य भक्ति के दस रत्न हैं , इन्हीं महात्मा ने 'कलिंकत्तुपरणी' की रचना की थी। यह ग्रन्थ उपलब्ध है। इस मन्दिर के बारे में शासन भी है। इस गाँव का नाम 'अरसवनकाडु' है। मूलनायक आदिनाथ भगवान् हैं । धातु की कई मूर्तियाँ हैं । शासन देव-देवियाँ है । मन्दिर के सामने विशाल अहाता है । क्षेत्रपाल और ज्वालामालिनी का अलग मन्दिर है। यह मन्दिर ईटों से बना हुआ है । ताम्र ध्वजदण्ड है। शिलापट्ट में मन्दिर जीर्णोद्धार का इतिहास है। मन्दिर विशाल है। यहाँ पहले दस दिन ब्रह्मोत्सव होता था। यह मन्दिर आर्चिलोजी डिपार्टमेंट के हाथ में है। वेदारण्यं तम्बाकू (स्वस्तिक) वालों की तरफ से अच्छे ढंग से जीर्णोद्धार हो गया है। अभी दो साल पहले पंचकल्याणक प्रतिष्ठा भी हो चुकी है। मन्दिर सुरक्षित हो गया है। अमणकुडि :- अमण का अर्थ है- निर्ग्रन्थ । इस नाम से पता चलता है कि यहाँ प्राचीन काल में जैन लोग रहते थे। यहाँ राजराजेश्वर मन्दिर (अजैन) का शासन है। उसमें इन सब बातों का विवरण है। 86 Jan Education International For Private & Personal use only www.janelibrary.org
SR No.003645
Book TitleTamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2001
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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