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________________ ग्रन्थ में पौने दो लाख श्लोक है। यह ग्रन्थ ज्येष्ठ शुक्ला पञ्चमी के दिन पूर्ण हुआ था। उस दिन सभी भव्य जीवों ने उस ग्रन्थ की पूजा की । तभी से यह दिन श्रुत पञ्चमी के नाम से प्रसिद्ध हुआ और ज्ञान का प्रतीक बना। आचार्य इन्द्रनन्दि ने इसका वर्णन करते हुए 'श्रुतावतार' में लिखा है ज्येष्ठसितपक्षपञ्चम्यां चातुर्वर्ण्य संघसमवेतः। तत्पुस्तकोपकरणैर्व्यधात् क्रिया-पूर्वकं पूजाम् ॥ श्रुतपञ्चमीति तेन प्रख्याति तिथिरियं परामाप । अद्यापि येन तस्यां श्रुतपूजां कुर्वते जैनाः ॥ --श्रुतावतार १४३-१४४ अर्थ--ज्येष्ठ शुक्ला पञ्चमी के दिन कषायपाहुड और षट्खण्डागम की पूजा, चतुर्विध संघ, और चतुर्वर्ण सहित, क्रिया-पूर्वक की गई थी। इसी कारण श्रुतपञ्चमी पवित्र ख्याति को प्राप्त हुई। आज भी जैन लोग उस दिन श्रुत पूजा करते हैं । वास्तव में यह पूजा लिपि-पूजा ही है । केवल श्रमण परम्परा में ही नहीं, अपितु वैदिकों में भी ब्राह्मी को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की देनेवाली-धर्मार्थकाममोक्षदा' कहा गया है । कूर्मपुराण की एक संहिता का नाम ब्राह्मी है । वह चार वेदों से सम्मत है और उसमें छः हजार श्लोक है, अर्थात् वह बाह्य और अन्तः दोनों प्रकार के ज्ञान से भरपूर है। इस संहिता की दो पंक्तियाँ हैं इयन्तु संहिता ब्राह्मी चतुर्वेदैस्तु सम्मिता। भवन्ति षट् सहस्राणि श्लोकानामत्र संख्यया ॥ --कूर्मपुराण, १/२२-२३ ___ ब्राह्मी को 'वरदा' बहतों ने कहा, जैनाचार्यों ने भी। हम जो कुछ चाहते हैं, उसे प्राप्त करने के लिए एक माध्यम की आवश्यकता होती है, फिर वह माध्यम महावीर के रूप में हो, बुद्ध, कृष्ण या ईसा के रूप में। माध्यम तो माध्यम ही होता है, वह हमें प्रेरित कर सकता है, आगे बढ़ा सकता है, किन्तु प्राप्तव्य प्राप्त होता है, अपनी ही शक्ति से । जब तक हम में दृढ़ विश्वास न होगा, हम अपनी कोई भी-इहलौकिक अथवा पारलौकिक इच्छा पूरी नहीं कर सकते, यह सच है। साथ ही यह भी ठीक है कि जिसे हमने अपना प्रेरणा सूत्र माना है और जिससे प्रेरणा प्राप्त कर हमारा विश्वास दृढ़ से दृढ़तर बना है, वह हमारे लिए सम्मान्य और पूज्य तो है ही। ब्राह्मी भी ऐसे ही पूज्य स्थान पर प्रतिष्ठित है। प्रसिद्ध पं० आशाधर ने अपने अनगारधर्मामृत में ब्राह्मी से आशीर्वाद माँगा है, जिससे कि वे मैत्री, प्रमोद कारुण्य और माध्यस्थ जैसी भावनाओं में सतत तत्पर रहें, उन्हें निरन्तर भाते रहें। भायेंगे वे स्वयं, किन्तु उनका मन डगमगाता है, उसे मज़बूत बनाना है । वह उन भावनाओं में अडिग बना रहे, ऐसा वे चाहते हैं। अतः ब्राह्मी की ओर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003641
Book TitleBrahmi Vishwa ki Mool Lipi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages156
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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