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इस प्रकार लिपि और लेख पर्यायवाची थे । पाणिनीय अष्टाध्यायी में लिपि शब्द का प्रयोग हुआ है। डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल का कथन है, "पाणिनि ने ग्रन्थ, लिपिकर, यवनानी लिपि और गौओं के कानों पर संख्यावाची चिन्ह अंकित करने की प्रथा का उल्लेख किया है। ये सब लिपि-ज्ञान के अस्तित्व के निश्चित प्रमाण हैं।"१ पाणिनि ने अपने सूत्र ३/२/२१ में लिपि का दूसरा उच्चारण लिबि भी स्वीकार किया है। कौटिल्य के अर्थ शास्त्र (१/५) में लिपि शब्द आया है। वहाँ सांकेतिक लिपि को संज्ञालिपि कहा गया है । २
- ईरानी सम्राट दारा प्रथम के बहिस्तून अभिलेख में उत्कीर्ण लेख को दिवि कहा गया है। लिपि और दिवि में लिपि और लिबि की भाँति उच्चारण भेद हो सकता है, किन्तु इस आधार पर यह अनुमान कर लेना कि-"लिपि और दिपि का मूल सम्भवतः प्राचीन ईरानी दिपि से है और ये शब्द ईसा-पूर्व ५०० में पंजाब पर दारा के आक्रमण से पूर्व भारत में न पहुँचे होंगे। दिपि ही बाद में लिपि हो गई।"3 ठीक नहीं है। वेद और अवेस्ता में शब्द साम्य है। उच्चारण भेद से शब्दों में अन्तर आया है। इसका अर्थ यह तो नहीं है कि अवेस्ता से वेद अथवा वेद से अवेस्ता में शब्द-ग्रहण हुआ है। संस्कृत और फारसी भी — Allied Languages ' थी । अतः लिपि और दिपि का मूल एक हो सकता है, किन्तु लिप से दिपि अथवा दिपि से लिपि शब्द बना या हो गया, कहना उपयुक्त नहीं है। व्हूलर का यह कथन भी सारगभित प्रतीत नहीं होता कि भारतीय महाकाव्यों और बौद्ध आगमों में लिख, लेख, लेखक और लेखन का प्रयोग अधिक है, लिपि का कम, क्योंकि वह विदेशी शब्द है । ५ एक शब्द के अनेक पर्यायवाचियों में कोई अधिक चल पड़ता है और कोई कम, किन्तु इस आधार पर कम चलने वाले का मूल विदेशी मान लेना युक्तिसंगत नहीं है। जैसे चन्द्रमा के अनेक पर्यायवाची हैं, किन्तु चन्द्र या चन्द्रमा जितना प्रचलित
१. डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल, पाणिनिकालीन भारत, प्र.सं०, वि. सं.. २०१२, वाराणसी
५/२/३०६. २. कौटिल्य, अर्थशास्त्र १/७. ३. व्हूलर, भारतीय पुरालिपिशास्त्र, मंगलनाथसिंह-अनुवादित, वाराणसी, पृष्ठ १२ 4. "The origin of the term 'divira' seems to be in the word 'diPikara'
( a writer or Engraver ) used in the Asokan Edicts. Dipikara' could Easily be Prakritised into 'divikara-divira, It is likely that dipikara' and divir were derived from the same common source, as sanskrit and ancient Persian were allied languages."
डॉ. राजबली पाण्डेय, इण्डियन पेलियोग्राफी, पृष्ठ ६१. ५. व्हूलर, भारतीयपुरालिपि शास्त्र, पृष्ठ १०.
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