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लिपि : व्युत्पत्ति और विश्लेषण
लिपि और लिपिकार
लिपि शब्द 'लिप उपदेहे' से लिप् धातु में, ‘इक कृष्यादिभ्यः' इति इक् प्रत्यय के लगाने से बनता है। १ लिप् धातु लेपने, लीपने या पोतने के अर्थ में आती है। जैसे काष्ठादिफलक पर चिकनी मुलतानी मिट्टी का लेपन करना । ओठों पर मांजिष्ठ (मजीठ) का लेपन भी लिपि कहलाता है--"लिपि लेपन द्रव्यम्, ओष्ठ रज्जिका मांजिष्ठी लिपिरोष्ठयोः ।" इसी कारण 'लिप्यते इति लिपिः' कहा जाता है । जैन ग्रन्थों में काष्ठफलकादि को सुधा प्रभृति द्रव्यों से लीपने की बात कही गई है। २
लिपि शब्द केवल लीपने या पोतने के अर्थ में ही नहीं, अपितु लिखने के अर्थ में भी आता है। मेदिनीकोश के रचयिता ने 'लेखा लिपि:' लिख कर लेखन कर्म को लिपि माना है । लेखा शब्द लिख्' धातु से बना है और लिख् धातु 'लिख विलखने' से विलखन् अर्थ में आती है। विलखन का अर्थ है एन्ग्रेवेशन अर्थात् खोदना या छेदना । वह धातुपत्र पर हो, काप्ठ फलक पर हो, पत्थर पर हो, सूती कपड़े पर हो या किसी और पर, खोदना या छेदना ही कहलायेगा। ईसा से छठी शताब्दी पूर्व के सिंहली आगमों में लेखन को 'छिन्दति लिखति' कहा गया है।' विनयपिटक में एक स्थान पर बौद्ध-भिक्षुओं के लिए नियम खोदने की बात लिखी है।५ जैनों में मूर्ति लेख अत्यधिक प्राचीन हैं । मोहन-जो-दरो में ऋषभदेव की खड्गासन मूर्ति पर 'जिनाय नमः' खुदा हुआ है। इस छेदने या खोदने के काम में छैनी, हथौड़ा और कील का प्रयोग होता था। प्राचीन ग्रन्थों में इन साधनों का भी उल्लेख हुआ है । कालान्तर में हल से भूमि-विदारण को भी विलखन कहने लगे, जैसा कि 'लेखनं भूमिदारणं' से सिद्ध है। १. 'लिप्यत इति लिपि:'--अमरकोष २/८/१६ 'लिप् उपदेहे'-जु. उ. अ., इति धातोः,
‘इक कृष्यादिभ्यः'-वात्तिक ३/३/१०८ इति इक् प्रत्ययः । २. "पूर्वस्मिन् युगे काष्ठफलकादिक सुधाप्रभृतिद्रव्यरुपलिप्य अंगुलिभिनंडैर्वा अक्षराणामाकृति
विधीयते स्मेति प्रतीयते ।" देखिए भगवतीसूत्र, संस्कृत व्याख्या. ३. मेदिनीकोश, 'ख' ४. ४. विनयपिटक, भोलेनवर्ग सम्पादित, १/२४ और सेक्रेट बक्स माँव ईस्ट'.१०/२९. ५. देखिए वही.
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