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________________ उसके आस-पास के डोंगरों की लिपि बतलाते हैं। उनकी दृष्टि में अब तो इसका प्रचलन काश्मीर में भी हो गया है । ' १११ शारदा लिपि में लिखे गये अभिलेखों में सबसे प्राचीन कीरग्राम (कांगड़ा) की दोनों 'बैजनाथ प्रशस्तियाँ' मानी जाती हैं। इनकी तिथि ८०४ ई. है । प्राचीन भारत में बहुत-से नागरी के हस्तलिखित ग्रंथों के हाशियों पर टिप्पड़ियाँ शारदा लिपि में दी हुई हैं । शारदा लिपि के अक्षर कुषाण काल से मिलते-जुलते हैं । उसकी लकीरें रूखी और मोटी होती हैं। डॉ. बूलर का अभिमत है कि सातवीं सदी से पहले शारदा लिपि गुप्तलिपि से पृथक नहीं हुई थी । इसके प्रमाण स्वरूप उन्होंने शारदा लिपि में द्विपक्षीय य के प्रयोग को, ण की आधार रेखा के दबने को, इ और ई की मात्राओं के क्रमशः बायें और दायें खिंचने को तथा जिह्वामूलीयों के सरलीकरण को प्रस्तुत किया है। ૨ ब्राह्मी से विकसित दक्षिणी लिपियाँ दक्षिणी भारत की लिपियों के सम्बन्ध में श्री रामधारीसिंह दिनकर ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ 'संस्कृति के चार अध्याय' में लिखा है " द्राविड़ भाषाओं की सभी लिपियाँ ब्राह्मी से निकली हैं । ब्राह्मी का ज्ञान अशोक के समय दक्षिण भारत में भी प्रचलित रहा होगा, अन्यथा अशोक ने अपने अभिलेख, दक्षिण में भी, ब्राह्मी में ही नहीं खुदवाये होते । ऋषभदेव ने ही अठारह प्रकार की लिपियों का आविष्कार किया, जिनमें से एक लिपि कन्नड़ हुई । " 3 एक ग्रन्थ है --- कन्नड़ साहित्य का इतिहास, इसके लेखक हैं- श्री सिद्धगोपाल काव्यतीर्थ । उन्होंने तेलगु, कन्नड़ तथा तमिल के ब्राह्मी से विकसित होने की बात लिखी है। उनका कथन है, "तेलगु तथा कन्नड़ लिपियों में अत्यल्प अन्तर है, उतना जितना कि देवनागरी और गुजराती लिपि में । दो-तीन अक्षरों के सिवा बाकी सब अक्षर दोनों लिपियों में समान हैं । अक्षरों के ऊपर की शिरोरेखा में दोनों लिपियों में जरा-सा अन्तर है । ब्राह्मी लिपि की वही शाखा, जिससे कन्नड़ लिपि निकली है, दक्षिण में सिंहल तथा पूर्व में सुदूर जावा तक जा पहुँची । अतः सिंहल तथा बर्मा आदि की लिपियाँ कन्नड़ तथा तेलगु लिपि से मिलती-जुलती है। तमिल लिपि ब्राह्मी की एक दूसरी शाखा से निकली, अतः कन्नड़ और तेलगु लिपि से भिन्न है । यों तो ब्राह्मी १. भारतीय पुरालिपिशास्त्र, पृष्ठ ११७. २. देखिए वही, पृष्ठ ११७-११८. ३. संस्कृति के चार अध्याय, पृष्ठ ४४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003641
Book TitleBrahmi Vishwa ki Mool Lipi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages156
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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