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प्रमादशून्य पाठ - प्रस्तुति कदापि संभव नहीं है । फिरभी पूर्व प्रकाशित पाठ, सरजमीन पर हाथीगुम्फा अभिलेख का अध्ययन से हमसे जो कुछ भी बन पाया उसी के आधार पर मैने व्याख्या करने का विनम्र प्रयास किया है।
इस ग्रंथ के प्रकाशन का सारा श्रेय श्री शांतिकुमार जी को जाता है। उनका ध्येयनिष्ठ अनुराग, औदार्य तथा प्रोफेसर श्री जगदीश कुमार गुप्ता, श्री विनोद कुमार टिबेरवाल जी तथा श्री राजेन्द्र कुमार अग्रवाल जी के सदाशय सहयोग, आत्मीय - आग्रहसे परिपूर्ण व्यवस्थाओं के कारण इस कार्य को सफलता प्राप्त हुई है। मैं इन सब के प्रति हृदय से आभारी हूं।
मेरे हिताकांक्षी पण्डित श्री अर्जुन होताजी के आशीर्वचनों से मुझे बल मिलता है । मुझे इस ग्रंथ को प्रस्तुत करने में डॉ. श्रीमती ज्योत्स्नामयी महापात्र, ऐतिहासिक श्री विघ्नराज पटेल, प्रबुद्ध मर्मज्ञ अइँठु साहु, इतिहासकार प्रो. यज्ञकुमार साहु, प्रो. करुणासागर बेहेरा, प्रो. राजकिशोर मिश्र, ओडिशा म्युजियम के अधिक्षक डॉ. हरीशचंद्र दास, प्रो. नारायण पृषेठ्. प्रो. युगल किशोर बहिदार, श्री गौरीशंकर पाणिग्राही, डॉ. रामनारायण नंद, जगदानंद छुरिया और भैया शंकर प्रसाद, भाभी सुमित्रा देवी आदि विद्वानों का अकुण्ठ सहयोग तथा सत् परामर्श प्राप्त है। उनके प्रति मैं अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं ।
प्रख्यात चित्र शिल्पी, परम सुहृद विद्वान श्री असित मुखार्जी ने अपने कलात्मक आवरण- चित्र से इस ग्रंथ को अलंकृत किया है । एक विशाल हृदय और अप्रतिम प्रतिभा के धनी श्री मुखार्जी के प्रति आभार व्यक्त करने की अभिव्यक्ति - समर्थता मुझमें नहीं है। आदरणीय श्री सौरींद्रकुमार उद्गाता ने इस ग्रंथ में संयोजित चित्र बनाये हैं और मेरे प्रिय भगिनी पुत्र श्री सुनील कुमार केड़िया ने पाण्डुलिपि प्रस्तुति में सहायता की है। इन दोनों के लिये मेरी अशेष शुभ कामनाएं |
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