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निचले खण्ड़ में दोनों ओर गुफाएं खोदी हुई हैं। जिससे बीच में एक प्रशस्त आयताकार आंगन है। ऊपरी खण्ड एक विशाल प्राकृतिक गुम्फा है, जिसे अर्हतों के आवास के रूप में उपयोग करने लिये उन्नत शिल्प-कौशल अपनाया गया था। राणीगुम्फा को एक रंगमंच के रूप में भी स्वीकारा गया है। सम्राट खारवेळ की दिग्विजय वर्णन, नृत्य नाटकों के अभिनव दृश्य, सिंहपथ रानी (द्वितीय महिषी) के रोमांचक चरित्र की चित्रावली भी इसी गुम्फा में हैं, जिनके विवरण इसके पूर्व इसी ग्रंथमें दिये जा चुके हैं। उन पर चर्चा भी हो चुकी है। फिर भी पाठकों की जानकारी के लिये यहां रंगमंचका एक रेखा चित्र प्रस्तुत कर रहे है। (चि.क्र.१४)
राणीगुम्फा की बायीं ओर से लेकर दाहिने पार्श्व तक अनेक गुफाएं खोदित हुई थीं। उनमें से कुछेक ध्वंस हो चुकी हैं। जो अब भी अक्षुण्ण अवस्था में हैं, वे हैं-बाजाघर गुम्फा, छोट हाथी गुम्फा, अलकापुरी गुम्फा, जय विजय गुम्फा, गणेश गुम्फा, ठाकुराणी गुम्फा, और, पातालपुरी गुम्फा। इन गुम्फाओं में खोदित वृक्ष, लता, जीवजंतु और नर-नारियों की प्रतिमूर्तियां कला की दृष्टि से राणीगुम्फा के चित्रों की समाकलीन जान पड़ती हैं।
बाजाघर गुम्फा में बारह प्रकोष्ठ हैं। प्रत्येक प्रकोष्ठ का अपना बरामदा है। अब अधिकांश प्रकोष्ठ भग्नप्राय हो चुके हैं। दाहिनी
और जो प्रकोष्ठ है उसे मरम्मत के बाद खंभों के सहारे संरक्षित कर रखा गया है।
___छोट हाथीगुम्फा में ईसापूर्व प्रथम शताब्दी का एक क्षुद्र अभिलेख है [देखें परिशिष्ट -१.नं ७]। इस गुम्फाके सम्मुख भाग पर तीन-तीन हाथियों को पत्र-पुष्प लेकर धीरे-धीरे आते से दिखाए गये हैं। दोनों पार्श्व के हाथियों में प्रथम है शावक, बीच में बड़े बड़े दांतोवाला नर हाथी और अंत में है हाथिन। लगता है जैसे वे तद्गत मन से अर्हतों के स्वागत सम्मान के लिए बढ़ते आरहे हैं। .
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