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________________ रोम के वाणिज्य- संपर्कों की सूचना देती है। इतिहासकार प्लिनी ने लिखा है- भारतीय व्यापारी रोम् से काफी अर्थ ले लिया करते थे जिस की तुलना में बहुत ही कम पण्य सामग्री दिया करते थे । एक अज्ञात ग्रीक नाविक के द्वारा रचित [ ई. ६० ] 'पेरीप्लस ऑफ दी एरीथ्रीयन सी (Periplus of the Erythraen Sea) ग्रंथ में कलिंग के दक्षिण से उत्तर दिशा में क्रमशः पिथुण्ड़. पलुर, गंगा और ताम्रलिप्ति बंदरगाहों से रोम साम्राज्य के साथ वाणिज्य विनिमय के दृष्टांत लिपिवद्ध होकर है। इन बंदरगाहों के जरिये सूती वस्त्र, मशाले, विभिन्न प्रकार के रंग रोम के लिए निर्यात किये जाते थे । उस समय नारियों को सम्मानास्पद आसन प्राप्त था । खारवेल की दोनों महिषियों का उनके धार्मिक विचार पर पूर्ण प्रभाव था, जिस पर चर्चा हो चुकी है। तब नारियां स्वच्छंदता से आ-जासकती थीं। उन्हें अपने पतियों के साथ उत्सव समारोहों में भाग लेने या देखने का अवसर मिलता था। अकेली नारियां राजपथ पर अश्व व हस्ती चालन भी करती थीं। वे नृत्य संगीत आदि में प्रवीण थीं । खारवेळ के समसामयिक खोदित चित्रों से यह भी ज्ञात होता है कि मानो नृत्य, संगीत वादन आदि केवल नारियों की कलाएं मानी जाती थीं । प्राचीन काल से भारत के विभिन्न राज्यों में गणिकाओं की प्रतिष्ठा थी । प्राचीन ग्रंथों में इसके अनेक उदाहरण हैं। मध्ययुगीन ओडिशा के कई दानपत्रों से भी गणिकाओं के बारे में अनेक आकर्षक सूचनाएं मिलती है। पर खारवेळ के अभिलेख और चित्रों से इस के संबंध में कोई सूचना नहीं मिलती । खारवेळ के अभिलेख और खोदित चित्रों से स्पष्ट ज्ञात होता है कि, उस समय गुफा खनन और प्रस्तर-शिल्प का काफी विकास हुआ था। इसके अतिरिक्त, वयन, प्रसाधन सामग्री और आभूषण निर्माण आदि कार्यों में अनेक नियोजित होकर थे। वर्धकि शिल्पागारों Jain Education International ४७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003640
Book TitleKharvel
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year1993
Total Pages136
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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