________________
५९
गँवार, वाल आदि की कोमल सींग और दूसरी जात के कोमलफल इन सब को तुच्छ औषधि मानना चाहिये ।
चने के फूल, केरी के मोर - जिसमें गुटली न पड़ी हो, बोर के ठलिये में से गर निकाल कर खाना आदि में भी दूषण लग जाता है । क्यों कि वनस्पतियें अत्यन्त कोमल अवस्था में अनंत काय होती है । इसे अनन्त काय व्रत का भंग हो जाता है । ऐसी वस्तु को अधिक खाने से भी तृप्ति नहीं हो सकती है । तथा खाने में थोडी आती है । एवं खाने के पश्चात् उसकी गुटली को बाहर फेंकने से मुँह की लार का परस्पर सम्बन्ध होने से असंख्याता संमूच्छिम जीवों की उत्पत्ति होती है । तथा जो पुरुष बहुत तुच्छ फल खाता है । उसे तत्क्षण रोग भी हो जाता हैं । यह सबबसें तुच्छफल का हम्मेश त्याग करना चाहिये ।
हे भाइयों ! जब आपका तुच्छ ममत्व भाव इन तुच्छ अभक्ष्य वस्तुओं पर से उड़ जायगा, तभी आपको शाश्वत् अनंत सुखरूपी लहरों में मग्न होने का समय शीघ्र प्राप्त होगा ।
२९ चलित रसः - सड़ा अन्न, वासी रोटी, चांवल, दाल,. शाक, खिचड़ी, सीरा, लापसी, भजियें, थेपलां, पुड़ला, बड़े, नरमपूरी, ढोकला आदि अनेक रसोई ऐसी है, कि जो एक रात्रि व्यतीत होने के पश्चात् वासी हो जाती है । सूर्यास्त हो जाने के पश्चात् उन चीजोंका स्वाद, रंग, स्पर्श, और बदल कर "चलित रस" होने से अभक्ष्य हो जाती है ।
खुशबू
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org