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... द्विदल-विदल यानी सामान्य रूपसे जिसको कठोल धान्य कहा जाता है. वो हरेक का कच्चे गोरस के साथ खाने का त्याग करना चाहिये. .
द्विदल की सामान्य रूप से यह व्याख्या करने में आती है, किः- जिसमें से तेल नही निकले, व वृक्ष के फल रूप न हो.
और दोनो दल चीरके बराबर दाल बने, उनको द्विदल कहते है.
चने, मूंग, मटर, उड़द, तुवर, वाल, चवलां, कलथी, रह, लांग, गुवार, मेथी, मसूर, हरे चने, बगैरा द्विदल की चीजें है. हरी-सुखी चीजें, तरकारीयां का चुरा, दाल, और उसकी बनावट वगैरा भी द्विदल गिनने में आती है. जैसे कि कठोल मात्र के पत्ते की तरकारीयां-वालोर, चौलासींग, तुवर, मूंग, मटनें, गुवारफलीं, हरे चने, पांदडी की तरकारी
और सुकवणी, संभारा, अचार, दाल, फली, सेव, गांठिया, पूरी, पापड, बुदी वगेरा भक्ष्याभक्ष्य के विवेक में द्विदल गिनने में आती हैं।
उपर लिखी हुई तमाम बातें लागू पडती हो, मगर जिसमें से तेल निकले, वो द्विदल गिनने में नही आते, राई, सरसों तिल:
मेथी डाला हुवा अचार वगैरा चीजें द्विदल मानना चाहिये.
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