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लेकिन ऐसा नही रखते हुवे जल्दि काम में लेकर खलास कर देना चाहिये, या फिर थोड़ा जरुरीका डालना चाहिये. ____ उपर लिखी हुई सूचनाओं के अनुसार बनाये हुवे अचार में दोष हैं या नहीं ? यह बात केवलीगम्य-केवली भगवान के अलावा कोई नहीं बतला सकते। आज कल के समय में जिह्वाइंद्रिय के लालच से उपर की सूचना के मुताबिक नहीं सुखाते है सबब-उसमें ज्यादा सुखाने से स्वाद चला जाता है। ऐसे तुच्छ अचार को जिह्वाइंद्रिय द्वारा विजय करके त्याग करने वाले रत्न शिरोमणि वीर पुत्र होते है. और वो लोग तारीफ के लायक है. कारण इस आत्माने अनेकवख्त हरेक चीजें खाने के काम में ली, मगर तृष्णा नहीं गई. यह एक आश्चर्य है. ( अणाहारी) अनशन किये बिना मोक्ष नहीं मीलता, मीलेगा भी नहीं, इसीलिये ऐसी तुच्छ अभक्ष्य चीजों की ममता छोड़ देना चाहिये. जिसे हमेश के लिये अनाहारी पद प्राप्त हो. [अचार, मुरब्बा वगैरह संधाण-सोड रूप पदार्थ ज्यादा समय तक रक्खें जाय, तो उनमें जीवोत्पत्ति का संभव होनेसे बहुत से जैन बंधु ऐसी चीजों का हमेश के लिये सर्वथा त्याग रखते है. वो ठीक है]
(१५) घोलवड़ा-घोलवड़े यानी द्विदल-विदल और गायके दूध में मिला करके बनाई हुई चीजें अभक्ष्य गिनने में आती है।
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