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१२ करा-यानी ओले आकाश में से पडते है उसमें भी बरफ के मुताबिक महा दोष है.१ जिनेश्वर की आज्ञा के खिलाफ है. वास्ते त्याग करना चाहिये. [देखोबरफ पृष्ठ १९] समालना.” मगर उसका कारण जहर होता है. बहुत से प्राचीन वैद्यक में ऐसे जहर का उपयोग खास कर बतलाया नहीं। अलबत्त, ऐसे प्रसंग कभी जरूर होते है। जिसमें जहर की खास जरूरत पड़ती है. जैसे--पानी के अन्दर डुबे हुवे मनुष्य मूर्छित हो जाता है। उस वक्त उसको हिम गर्भको गोलि कुछ प्रमाण में एक दफा धिस कर पिलाई जावे, तो उसकी मूर्छा उड़ जाती है। परन्तु कुछ देर देख कर अगर जरुरी देखने पर देना चाहियें, लेकिन मरने जीने का खास महत्व और सच्चे प्रसंग में देने में आवे, तो हरकत नहीं । ऐसे खास कारण में बताई हुई जहर की चिकित्सा को पीछे के वैद्यक में व्यापक कर दी गई, ऐसा मानने में आता है। और आधुनिक विदेशी चिकित्सा का जहर खास प्राण है, ऐसा मानने में आता है।' इसके उपर से जहर को अभक्ष्य गिनने में जैन शास्त्रकारो की कीतनी सूक्ष्म दृष्टि है ? ये समजानेके लिये इतनी चर्चा की गई है।
(१) जैसे कच्चा फल और उगता हुवा धान्य खाने से मीट चड़ती है. और गर्भवालि स्त्री के कच्चा गर्भ गिर जाय, उस वक्त सुवाबड़ में खाने जैसी घी वगेरे उत्तम वस्तु के बदले उसको कसुवावड़में तेल चोल कलसे बाजरी की सुखी रोटी वगैरा खाना पड़ती है इसी तरह कच्चे गर्भकी तरह कच्चे वरसाद का स्वरुप ओले कुदरत खिलाफ होने से अभक्ष्य है।
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