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________________ १९१ वहां जाना चाहिये | और उपर राख डालना चाहिये । इतनी बातोंका ध्यान - खाल धर्मात्मा और विवेकी मनुष्य को रखना अत्यन्त आवश्यक है । तथा इस प्रकार अगर विचारे, तो प्रत्येक मनुष्य अपने को इस व्यर्थ पाप (sin) से बचा सकता है । इस प्रकार वर्ताव नहीं करने से अनजान में असंख्य समूर्छिम जीवों की उत्पत्ति तथा विनाश होता है । तथा माक्खी चीटो इत्यादि प्राणी उसे अपना भोज्य पदार्थ समज कर उसे खाने को चोंट जाते है-और उसका स्पर्श करने ही उनके पेखु उपरोक्त पदार्थ से चिपक जाते है । इस प्रकार अनुपयोग ( carelessness ) अनेक प्राणियों के प्राणों के हरण का कारण भूत बन जाते है । हत्यादि कई प्रकार के दोष उत्पन्न होते हैं - इस लिये उपरोक्त पदार्थों को खूखे अथवा धूप वाले स्थान पर फेंक कर शीघ्र राख से ढक देना चाहिये नहीं तो सिर्फ ४८ मिनट ( दो घडी) के ही क्षुद्र समय में समूर्छिम पंचेन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति हो जाती है - इसलिये इस तरफ विवेकी श्रावकों को अपने कोमल हृदय में दया को स्थान देते हुए उपयोग रखना चाहिये | ४ शरीर को (मर्दन) मालिश कर अथवा बिना मालिस के भी अगर स्नान करना होवे. तब भी मोरी में स्नान नहीं करना चाहिये - क्योंकि उस जल के अन्दर शरीर का मेल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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