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________________ मल-मूत्र तथा जूठ का पानी इत्यादि का पानी गटरोंसे बाहार निकालने में असम्भवित प्रतीत होता है । क्योंकि भारतीय संस्कृति-भारतीय वैद्यक शास्त्रीय विज्ञान । तथा धर्मशास्त्र-उनसे विरुद्ध है। इसलिये मुख्य रीति स जनता इन शङ्काओ के निवारणार्थ तथा जूठे पानी को फेंकने आदि का कार्य खूले में-प्रकाशमान हवा धूप वाली तथा मिट्टीवाली भूमि पर ही विशेषतः करती होगी। पाटण अमदावाद जैसी गुजरात की महान् समृद्धिशाली नगरियों में प्रथम सें खास इस भांति की गटरों का न होना ही जैन भावना का फल मालूम होता है । तथा समृर्छिम पंचेन्द्रिय जीवों के बचाव के लिये जैनों की अहिंसा का ज्वलन्त उदाहरण है-इस प्रकार हजारों वर्षों के पूर्व भी जन लोग अपनी अहिंसा के पालन में कैसे सचेत थे ? वह दृष्टिगोचर हो सकता है । तथा जैन लोग राज्यों के दीवान, नगर शेठ तथा शहरों तथा ग्रामों के मुख्य व्यक्ति होने के कारण उनका प्रभाव इस ही जनता के उपर कितना पडा है? इस समस्या पर विचार करने सें भी वही पूर्व की व्यवस्था ही दूरदर्शिता पूर्ण उच्च प्रतीत होती है. आजकल की म्युनिसिपल कमेटिये कि जो यहां की प्रजामें परदेशीव्यापार,संस्कार तथा सामाजिक जीवनभरनेका एक साधन मात्र है। लेकिन यह होते हुए भी यहाँ की जनता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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