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पर लघुशङ्का अथवा दीर्घशङ्का करने से उसी प्रकार के कई भयङ्कर रोग हमारे गले लग जाते हैं । तथा कई प्रकार के संक्रामक रोग भी कईयों को हो जाते है । इत्यादि कई प्रकार से स्वास्थ्य सम्बन्धी तथा शारीरिक और धार्मिक हानियां होने के कारण से इन शङ्काओ के निवारणार्थ खूले स्थानों पर ही जाना योग्य है । जहाँ चींटी इत्यादि के नगरे ( चींटीओं के नगर ) न हों । हरियाळी ( नन्ही नन्ही हरी दुर्वा तथा काई फूलन आदि) रहित हो, कीचड से परिपूर्ण न होते हुए कडी भूमि हो, ऐसी भूमि पर जावे, जिस से शारीरिक स्वास्थ्य ठीक रहता है । तथा अनेक जीवों की रक्षा होती है। सच्चे अहिंसक होने का दावा कर सके, और उन जीवों को अभयदान प्रदान करें, अपन इसलिये इन बातों को ध्यान रखना अत्यन्त ही आवश्यक है ।'
१ भारत वर्ष के प्राचीन महान् शहरों के वर्णन मैं शहरों की बड़ी बडी खाल तथा उनके साथ मोहल्लो की जुदी हुई गटरों तथा उनसे सम्बन्धित नकानो के छुट्टी छुटी खालो का वर्णन भी प्राप्त होता है । उनपर सें इतना तो अवश्य मानना पडता है कि उस समय भी आज से सेंकडों वर्ष पूर्व भी हमारे देश में गटरों की व्यवस्था थी— लेकिन उन गटरों का उपयोग मुख्य रीति से वर्षा ऋतु का पानी तथा स्नान आदि का जल बाहर निकालने के छिये ही होता होगा ।
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