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प्रकारकी आशानता न हो और पवित्रता रहे उस प्रकारके वर्तन में बेपरवाही मत रखो । अनार्य और अन्य नीच जाति की प्रजा के विचार-तथा अनार्य विचार वाली आर्य प्रजाकी . समझ में भी अपनी इन सूक्ष्म बातों का रहस्य अभीतक नहीं आया हैं । इसलिये वे ऋतुधर्मको पालते नहीं हैं । और उल्टी अपनी मश्करी उडाते है. परंतु इसमें उनकी महान् मूर्खता और बे समझ हैं । इसलिये उन लोगों का एसी असभ्य बातों पर ध्यान नहीं देना ।
८४ स्कूल इत्यादिक में पढने में, मोटर, ट्राम, रेल्वे इत्यादिकमें, तांगे में तथा अन्य एसे प्रसंगो में, स्त्री-पुरुषों के परस्पर स्पर्शास्पर्शकी व्यवस्था को उपयोगपूर्वक साचवनी और एक दूसरे से दूर रहने में ही शास्त्रोक्त कथित नव वाड़ो का पालन हो सकता हैं। और पवित्र एवं महान् शियल धर्मकी रक्षा के लिये इस बातकी सावधानी रखनेकी पूरेपूरी आवश्यक्ता है।
८५ पूर्वापरकी स्पास्पय जातिओसाथकी स्पर्शास्पर्श की व्यवस्था समालना। वो तोडनेसें परीणामे अपनी प्रजाका नाश है। वास्ते अन्योंका अंध अनुकरणसे या अज्ञानसे स्पर्शास्पर्श व्यवस्था तोडने की बातका अमलकर उत्तेजन नहि देना.
८६ अपने पूज्य मुनिमहाराजाओं अलावा कीसिकाही उपदेश सुनना नहि चाहिए, आजकल जाहिर भाषन
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