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७५ बने वहाँतक किसी भी कार्य को स्वच्छ, व्यवस्थित और योग्य समय में ही सम्पूर्ण कर डालने की आदत डालो । ७६ भोजन करते वख्त बीदल का खास उपयोग रखो । ७७ खाल, मोरी, चाँदनी, परिंडे इत्यादिक पानी ढोलने की जगहों को बने वहां तक उपयोग ही कम करो और उन को स्वच्छ रखना ।
७८ रात्रि में नियमित समय पर सोने की आदत डालो । ७९ दोपहर को तो सामायिक करने की आदत चालू रखो । ८० धार्मिक पर्व और तिथियों की आराधना घर में आग्रहपूर्वक बराबर चालू रखो । तो ही धर्म घरमें टिकेगा, नहिं तो घरमें अधर्म अपना साम्राज्य चलावेगा ।
८१ पतिव्रतापनमेंहि स्त्री जाति की समस्त शिक्षा का समावेश होता है, उसे वरावर प्रचलित रखो. और पुत्रियों को उस में दृढ़ करेंगे, तो उनकी सम्पूर्ण जीवन सुखी, योग्य स्वतन्त्र, और संस्कारी बनेगी ही ।
८२ और उस धर्म को सिखानेवाले, तथा उसके गूढ रहस्य को समझाने वाले देव, गुरु, तथा धर्म की भक्ति हमेशा यथाशक्ति करने में चूकना नहीं ।
८३ स्त्रियोंको अपना ऋतु- धर्म बराबर पालना चाहिये. गूमडे फूटने के समान उसको मत समझो। शुरूआत का रजस् अत्यन्त मलिन पदार्थ है। एसा सूक्ष्म विचार करनेवाले ज्ञानी पुरुष और पूर्व के महान वैद्योने कहा है । इसलिये किसी भी
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