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________________ हाता नहि । व अचित्त होता है। पकानेसें १५५ पेरु-[जमरुख वो भी दो घडी बाद अचित्त होता नहि । अग्निका शस्त्र लगे तब अचित्त होता है। तो भी शाक वगैरह पकानेसें पेरु काफी नक्कर होनेसें पकता नहि, और सचित्त रहता है । वास्ते उनका सर्वथा त्याग करना। __उस-[शेरडी] मात्र रस नीकालने बाद दो घडी पीछे अचित्त होता है। सेतुर-सचित्त है । इस लीए सर्वथा त्याग करना । सीताफळ-सचित्त ही रहता है। बीजसें गर एकदम अलग नहिं पड़ता। जांबु, रायण, बोर, खलेला, गीली बदाम, द्राक्षगीली-बीज नीकालने बाद दोघडीसें अचित्त होता है। बीज सहीत पक्के केलें-सोनेरी केळे कलकत्ते तरफ होता है । वो पक्का होनेसें बीज उनमें भी रहता है । अचित्त होनेका चोकस नहि कह सकतें । संदिग्ध होनेसें नहि वापरना। विना वीजके सोनेरी या हरकोइ पक्के केळे छीलटा नीकालने बाद तुर्त ही अचित्त होता है । हरा वनस्पति त्यागी को केट बस्तुओंका त्याग है, उनसे सचित्त या अचित्त कुच्छ नहि वापरा जावे, यह स्पष्टीकरण करनेका सबब यह है की-अर्थ का अनर्थ न होवे, क्यु की अपने में वक्रता और जडताने बहुत स्थान लीया है, इसी लीए हरएक बाबत स्व मतिसे समजनेका निषेध कीया है। वास्ते गुर्वादिसे समजना। नहिं तो अनेक प्रकारसे अनर्थ हुआ देखने में आता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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