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“१४० वर्तमानमें नल हो जाने से पानी छानने के संबंधों और संखारा संभालनेकी बाबतमें बहुत अराजकता चल रही है। इस वजह दया प्रेमीओंके इस संबंधमें बने वहांतक बेदरकार न रहना। . वैसे ही गटरों होजानेसें पानी फेकने में, वापरनेमें और उनमें यद्वा तद्वा डालनेमें भी विवेक रखने में नहि आता है। यह बहुत अयोग्य है । दया दृष्टिसें यह बात उपेक्षा करने जैसी नहि हैं। गटरो में हरेक चीज जानेसें वो सड जाती है। फीर उनमैं बहुत जीवोंकी उत्पत्ति होती है। उसे हर तरहसे हवा बीगडकर आरोग्यको नुकसान करती है । गटरों के विष्टा मिश्रित पानीसें तरकारी, फळ, फुल वगैरह तद्दन फीके और स्वादहीन होते है । और एकदम सुक्ष्म रीतिसें गंधका अनुभव करनेवालों को उनमेंसें भी विष्टाकी बास आती है। सच्ची म्युनिसिपालिटी मूर्यका धूप, कुत्तो, काग, गधों, वगेरह है। वो कुच्छ भी गंदकी रहनें नहि देते । लेकीन नळों, गटरों, विगेरेह परदेशी माल की विक्री-करनेंका और प्रजा जीवन को काबु(हाथ)में रखने के लीए बडे आडंवर से "म्युनिसीपालीटी" की स्थापना करके परदेशी लोगोने हिंसा के बडे मत्थकें चालु कर दीये है। श्रावक वर्गको विवेक रखना । स्वच्छता के नामसें मुनिमहाराराजाओं के लीए भी यह कृत्रिम म्यु० ने मुश्केली खडी कर दी है।
थोडासा प्रमादसे असंख्य जोवोंका नाश हो जाय वो कैसा अनर्थ है ? जीसे हरेक भाइओ और भगिनियां पानीके लीए अवश्य ध्यान देंगे, असी हमारी प्रार्थना है।
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