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________________ - १३७ का भोजनका आरंभको इस देशमें उत्तेजन देनेके लीए ही टीका की जाती है । सादा भोजनकी अपनी पद्धतिमें सबको सरळतासे मील सके, वैसे मिष्टान्न के साथ, प्रत्येक मनुष्यको चार आने खर्च आता है । याने थोडीसी रकममें अधिकव्यक्ति लाभ ले सकती हैं । तब पार्टी में कार्डसे अमुक आमंत्रित संख्या ही लाभ ले सकती है। और वो भी केवळ व्यक्तियां ही बहुत वख्त उनके स्त्रीयां, बाल बच्चें तो घरपेही रह जाते है । उन्हों के लीये पार्टीआं भी नहि, और सादे देशी जिमणोंका भी निषेध तो वो लोक कर रहे है । कमाल ! दोनो तर्फसे बराबर कम बख्ती । धर्म, मार्गानुसारिता, और आर्य संस्कृतिके समजनेवालों एवं चाहनेवालो को ऐसी पार्टी रचना नहि । इतनाहि नहि, किंतु सिद्धान्तकी रक्षाके लीये उसमें जाना भी नहिं । धार्मिक विवेक संमालनेका कुछ भी साधन उसमें नहिं है । लेकिन स्वच्छंदीजन को यह जमाने में कोन पूछ सकता है ? क्यों कि उन्होंका ही यह जमाना तो है । उन्हों के विचार से तो उन्होंको उत्तेजन देना, वह इस जमानेका भूषण हैं । धर्म १ छोटी मीजलसों में भी अल्पाहार [ संपूर्ण आहार खर्चाळ होनेसे मुश्केल होता है ] टीफोनको इन्साफ देनेका प्रवृत्तिओं भी पार्टीपद्धतिकी भूमिका स्वरूप समजना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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