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________________ बेचतें है । और वो रू. २) का रतल से लगा के रू. १०, १५, २०, तक का रतल मीलता है। वास्ते उसे खूब सावधान रहना । केशर को समालने में ख्याल रखना, क्युं की उनको । हवा लगने से सूक्ष्मजंतुओपडतें है, औरभी जीवजंतु हो जाता है। ४३ अखी कठोळ-हरेक प्रकारकी अखी कठोळ न खानी चाहिए, प्रत्येक कठोळकी दाल करके खाना सर्वोत्तम हैं। क्योंकि-अखी कठोळ में त्रस जीवों की उत्पति होती है, वो साफ करने पर भी जीवो नीकलते नहीं। और अपनी दृष्टि भी भीतर पडती नहि । वास्ते जीव हिंसा हो जावे, इसी लीए कठोळकी ताकीद से दाल बनवा लेना. कठोळका ज्यादा वख्त रहनेसें जीवोकी उत्पति होती है । अखी कठोळ त्याग न हो सके, तो चातुर्मासमें और पर्व तीथि के दिनोमें तो जरुर त्याग करना । कठोळमें मीठाश होने के सबबसें बहुत जीवोंकी उत्पत्ति होती है। वास्ते वो अवश्य वर्जने योग्य है। ४४ से ४९ तक, हिंदु-दिल्दी-बीस्कीट, जो दिल्ही, पुना, वडोदरा वगैरह जगोंपे बनाने में आतें है । वो अपने कीतनेक बन्धुओं वापरतें है । परंतु वो बनाने में परदेशी मेंदा का उपयोग कीया जाता है । और उनको हलवे के माफक दो तीन दिन पानीमें हीलाते है। पीछे उनके बीस्कीट बनातें । वास्ते उनमें असंख्य संमूर्छिम और द्वीन्द्रियादि जीवोंकी घात होती है। केइ बीस्कीट तैयार करने में भी चरबी लगानेमें आती है, जीसे वो बीलकुल छोडने योग्य है । नानखटाइमें परदेशी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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