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४१ परदेशी मोरस-वो शुद्ध करने में अशुद्ध पदार्थे वापरतें हैं। उनकी चर्चा बहुत जगह हो गइ है। उनका ज्यादा अहेबाल नहि लीखतें है। कहना यह है की वैसी मोरस एवं सक्कर वापरने में शारीरिक तन्दुरस्तीका बीगडना और धर्मभ्रष्टताः यही दोनों बडे दुर्गुण है । इसलीए त्याग करना। अब कीतनेक मनुष्यों उनका त्याग करके, काशी प्रमुखकी देशी चीनी वापरते है ।*
लेकीन यह जमाने में दगलबाज बढ गये है। कीतनेक वख्त देशी के नामसे परदेशी माल खूब ज्यादा भाव से दिया जाता है। और जहां देशी बनावट होती है व्हां भी परदेशी चीनीका मिश्रण होता है । वास्ते ख्याल करना।
इन के अलावा, देखने में जहां दगा होता है। उनकी पहिलेही उपयोग रखना। और जबसे खात्रीपूर्वक न हो, यानी शंका मालुम पडे, तबसे वो चीज वापरनी नहि । और नियम ले के उनमें दोषित न होनेका बराबर ख्याल रखना।
४२ केसर-अपने देश में काश्मीरमें बहुत किंमती केसर होता है, एवं परदेशसें भी केसर अच्छाभी आता है। बने तक काश्मीरी केसर वापरना हर एक प्रकार से उत्तम है । लेकीन देशी केसर के नामसें एक तरहका कतरण को ऐसा काइ रंगका पट लगाके बनावटी केसर बेचने वाले
* चाय आदिक को टेवसे रोज नियमित मोरस पेटमें जाति है। जरुरीयात पर खाने की चीज अतियोग होने से शरीर में बिगाडाकरे ऊनको पतला करे, यह सब स्वाभाविक है।
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