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नील- फुग होनेका और सूक्ष्मजीव वगैरह या कुंथुंआदि होनेका, सुक्ष्म त्रस जीवो घुस जानेका, संभव है। गरमी - की ऋतुमें भी बराबर उनकी रक्षा करनेमें न आवे, याने संभाल से नहिं रखी जावे तो उनमें जीवों पडनेका संभव होता है। फीर भी, वेपारीयों के पाससे सुकवणी लेनेसे, उन्होंने हलकी चीजें वापरी हो, बिना देखरेखर्स सुधराइ हो, वगैरह हिंसाका दोष विना सबब लग जाता है।
" हरी वनस्पति का त्यागवालोंको तिथि और त्यागके दिनके अगले दिन हरे वनस्पति लाके उनकी चटनी, अचार, संभार्या किया हो, तो वो भी काम आता नहि । क्योंकी उनमें हरी सचित्त चीजें वापरनेका हेतु गर्भित रहता है । वास्ते जैसी युक्ति नहि करना - करवाना | सुकवणी खास करके बहुत सज्जड बरतन में भरना, उनमें हवा एवं बारीक जंतु भी न जावे । और दुसरी रीतिसें भी बहुत युक्तिपूर्वक समालना चाहिए । चातुर्मासमें सुकवणीका त्याग करना ही उचित है ।
२ खोपरा - चातुर्मास में नरीयल तोडके गीला गीलीगडीखोपरा नीकाला हो, वोहि दिन भक्ष्य है. परंतु उनको कतरके धीमें भुंज लीया हो, तो दूसरे दिन वापरने में हरजा नहिं.
३ से १२ तक, पोंक - पापडी, घडंकी डंबी, और बाजरी के डुंडे, जुवारके पोंक, चने के ओळे, मकाइ ( शेकेली ) और चोलेका सुडीआ [मटकीमें रखके अखी बाफेली] वगैरह का अवश्य त्याग करना चाहिए। क्योंकी यह पदार्थों बहुत सजीवोंके विनाश से होते है,
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