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________________ १२० में से हुआ है. जहांतक बने वहांतक ज्यादा त्याग रकवा जावे, वैसे ही ठीक.लेकीन कमती त्यागीओंको भी जहांतक बने वहांतक कभी हिंसा न लगे, यह ही सिद्धांत पर सुखुआ का वापरना प्रच- . लित हुआ हैं. और वो बरावर है. यद्यपि त्याग मार्गमें आरोग्य -अनारोग्य की चर्चाको प्रधान अवकाश नहि हैं. आरोग्य दृष्टि से क्या वापरना और कया नहिं वापरना? वो अलग प्रश्न है। परंतु, त्याग, अहिंसा, और संयमकी दृष्टि से कया वापरना? कया नहिं वापरना? वो ही विचार करना अत्र जरुरी है. आरोग्यकी दृष्टिसे मुखुआ वापरनेकी टीका करनेवाले इतर अनारोग्यकर अनेक चिजें वापरते हैं. और प्रवृत्ति भी असी बहुत करते है, उनका त्याग करते नहि. यानि आरोग्यका ब्हाना आगे धरके उन्होंका उद्देश अपना प्रचलित खानपानकी शैलीकी टीका करनेका होता है. अलबत, सब काम विवेक पूर्वक करना चाहिये, और शास्त्रकार भगवंतोका भी वेसा ही उपदेश है, कीसीमें दुराग्रह रखनेकी आज्ञा है भी नहीं। परंतु, खोटा लक्ष्यसे टीका करने वालों आधुनिक प्रचारकोंको उत्तेजना मिलनी न चाहिये। यह खास ख्यालमें रखना चाहिये। त्याग दृष्टिसिवाय साधारण सभ्यताकी दृष्टिस भी नहिं वापरने लायक चीजें अपवाद यानी रोगों वगैरह कारणसें वापरने की जरुरत पड़ती है। वास्ते जैनों के मुखुवा वापरनेके सामने प्रचार करनेवालोंकी टीका व्यर्थ और जैन जिवनकी मर्यादाओ व सिद्धांत समजने बीगरकी है। चातुर्मासमें सुकवणीमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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