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________________ १०४ उपरोक्त बताये हुऐ जितने साधारण वनस्पति के लक्षण हैं, वो सब के सब ही में होना संभव नहीं । कोई में कम भी होते हैं, और कोई में अधिक भी । पोई (पद्म) की भाजी के पान तथा पिण्ड [ अॅन्डीपेण्डी] अनंतकाय सुने जाते हैं । अनंतकायके लिये कितनीक सूचनाएँ: १ दूध के मावे तथा घी में कितनेक दगाखोर लोग रताळू, सक्कर कंद, बटाटे का मिश्रण करते है । इसका ख्याल रखना चाहिये । २ हरा अदरख तथा हलदी सूकेबाद (सुंठ और हलदी ) के खानेके उपयोग में आते है वो भक्ष्य है । इसके सिवाय अनन्तकायकी सूकी हुइ शाक, अचार आदि त्याज्य है । निध्वंस ( निर्दय जैसा मन ) परिणाम । २ निःशुक ( नफरत न होना, संकोच नहीं होना, वृतिकी चड्स, लोलुपता ) ३, परंपरा बढ़े । ४ देखनेवाळा अधर्मी बने, आदि हेतु होने से कंद जैसी कोईभी अनंतकायवस्तु, उसके भुजिये आदि प्रासुक होने पर भी शास्त्रमें इन्हें लेनेका मना किया है । ३ काँदे, इगली आदि के भुजिये करते है, तथा दुकानदार ढोकले में अभक्ष्य - चीजोका मिश्रण करते हैं, वे बासी रखकर बेचने के लिये फिरसे गरम करलेते है | बाजारु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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