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________________ दर्शन: चारित्रः इन तीन रत्नों की आराधकताः तथा दृढ़ सम्यक्त्वादिः उत्तम गुणों का हम शीघ्र अनुकरण करते जावें । श्री सुलसा और श्री रेवती : प्रमुख शीलवती श्राविकाओं का दृढ़ सम्यक्त्वादि चरित्रों का स्मरणः अनुकरणः हमें सदा प्राप्त होवे | श्री जैन शासन की अधिष्ठायिका श्री श्रुतदेवी सकल सिद्धि प्रदान करे । श्री महावीर भगवान के शासन की रक्षा करने वाले मातङ्ग यक्षः और सिद्धायिका देवी की स्तुति विघ्न शान्ति के लिए मैं करता हूं | श्री जैनधर्म की सेवा करने में तत्पर अन्य सम्यग्दृष्टि देवों को स्मरण कर, श्री सूत्र - सिद्धांत में से उद्धत कर, जिनाज्ञानुसार त्याग करने की इच्छावाले: और धर्म के इच्छुकः जीवों को भक्ष्याभक्ष्य का विवेक समझाने के लिए अभक्ष्यअनन्तकाय विचार नामक ग्रंथका प्रारंभ करता हूं । उत्सर्ग मार्ग में: - श्रावक को प्रासुक - अचित्त निर्दोष आहार लेने को कहा है, और शक्ति न होने पर अपवाद मार्ग में:- श्रावक सचित्त का त्यागी होना ही चाहिए । अगर वह भी न बन सके, तो बाइस अभक्ष्यः और बत्तीस अनन्तकायः वगेरह का त्यागी तो जरूर होना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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