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________________ ९८ २९ खिचडाका ढुंढणीया - जुवार और बाजरी को पानी डालकर खाँड़ते है, इससे उस के छिलके (फोंतरे) निकल जाते हैं, उनकुं सौराष्ट्र देश में ढुंढणीया कहते है । फिर उसको रांधते हैं। इस खंडे हुए अनाज का समय सेका हुवा धान्य की माफक है । अर्थात् वर्षाऋतु में १५ दिन, शीतऋतु में १ माह, और ग्रीष्मऋतु में २० दिन । इनके पश्चात् अभक्ष्य होता है । ढुंढणीया बराबर सुख जाना चाहिये. प्रकरण ३ रा २२. बत्तीस अनंतकाय. He rate अभक्ष्य होते हैं । कारण - एक सूई के अग्रभाग पर असंख्य शरीर होते है, और एक शरीरमें अनंत जीव रहते हैं, इस लिये सब अनंतकाय अभक्ष्य है । इससे श्रावक को उनका त्याग करना चाहिये । एक ( जिव्हा इन्द्रिय ) रसनेन्द्रिय की लोलुपता के लिये अनंत जीवों की हानि करना महान् अनर्थकारक है । इस लिये बत्तीस अनंतकायका सर्वथा त्याग करना चाहिये । इससे अनंत जीवों को अभयदान प्राप्त हो सकता है । कितनेक बन्धु रसनेन्द्रिय के वशीभूत होकर “ सालमें ५-१० सेर कंदमूल काम में लेना " एसा नियम करते हैं। परन्तु हमारे उन सुज्ञ बन्धुओं को जरा विचार करना चाहिये कि - " अनंतकाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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