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________________ ९६ रक्षक मानकर सीलसातम के दिन एक रोज पहले बनाया हुआ बासी भोजन काममें लेती हैं । और उसी दिन चूल्हा नहीं जलाती । इस लिये इस मिथ्यात्व आचार को छोड़कर बासी चलित रस कभी भी काम में नहीं लेना । एसी दृढ़ प्रतिज्ञा करना चाहिये | २३ घोलवड़ा (दहीं बडे ) गरम किये हुए दहीं व छाछ में बनाये हुए हों तो वे उसी दिन तो भक्ष्य हैं | कच्चे दहीं अथवा छाछ में बनाये हों तो अभक्ष्य ही है । I 1 २४ खाकरे - गेहूँ की रोटी को तवेपर सेककर बिलकुल करड़ी बना लेतें हैं । वो पांच सात दिन से ज्यादह नहीं रखना चाहिये । रोज २ बनाकर एक ही बरतन में रखते जाना अच्छा नहीं हैं। क्योंकि ऊपर ऊपर से काम में लेना और जो नीचे के बचे रहेंगे वो ज्यादह दिन के हो जाने से अभक्ष्य हो जाते हैं । और उनमें भी जंतुओ की उत्पत्ति हो जाती है । इससे पहले के बनाये हुए काम में लेते जाना चाहिये । और उस वरतन को साफ रखना चाहिये जिससे दूसरे जंतु भी उसमें अपना घर न बना सकें । और उसमें फूलन आदि भी नहीं हो सकती । खांखरे को बिलकुल करड़े बनाना चाहिये । [सुबह सिरावन के लिये बासी खानेमें न आवे इस लिये श्रावक के कुल में खांकरे बनाकर काममें लेने का रिवाज चला आ रहा मालूम होता है । ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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