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चोवीसी
जेठ शुक्ल बारसे जण्या, तस तेरसे संजम, फागण वदि छठे केवली, शिव लहे तस सातम...२... सत्तम जिनवर नामथी, सात इति शमंत, ज्ञानविमलसूरि नित लहे, तेज प्रताप महंत...३... चंद्रप्रभु नुं [८]
[३१]
चंद्रप्रभ जिन आठमा, चंद्रप्रभ सम देह, अवतरिया विजयंतथी, वदि पंचमी चैत्रह... १... पोष वदि बारश जनमिया, तस तेरसे साध, फागण वदिनी सातमे, केवल निराबाध... २... भाद्रव सातम शिव लह्या, पूरी पूरण ध्यान, अट्ठ महासिद्धि संपजे, नय कहें जिन अभिधान.....३.... सुविधिनाथ [६]
गोरा सुविधि जिणंद, नाम बीजुं पुष्पदंत, फागण वदि नोमे चव्या, मेहली सुर आनंतं...१... मृगशिर वदि पंचमी जण्या, तस छट्ठे दीक्षा, काति शुदि त्रीजे केवली, दीओ बहु परे शिक्षा...२... शुदि नवमी भादरवा तणी, अजर-अमर पद होय, धोरविमल सेवक कहे, नमतां शिव सुख होय ... ३. शीतलनाथ नुं [१०]
प्राणात कल्प थकी चव्या, शीतल जिन दशमा, वदि वैशाखनी छट्ठे जाण, दाघज्वर प्रशमा... १... महा वदि बारश जनम, दीक्षा तस बारसे लीध,
वदि पोष चउदश दिने, केवली परसिद्ध...२...
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