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________________ चोवीसी [१५] पार्श्वनाथ तु [२३] पास जिणंद सदा जयो, मनवंछित पूरे, भवभय भावठ भंजणो, दुःख दोहग चूरे...१... अश्वसेन नृप कुलतीलो, वामासुत शस्त, वाणारसीओ अवतर्यो, काया नव हस्त... २... नील वर्ण लंछन फणीओ, जीवित जस शतवर्ष, मानविजय प्रभु नामथी, पामे परिगल हर्ष...३... महावीर स्वामी नुं [२४] श्री वर्धमान जिनभाण आण, निज मस्तक वहिओ, सिंह लंछन परे सर्वदा, जस चरणे रहिए... १ क्षत्रिय कुंड ग्राम नयर, सिद्धारथ भूप, त्रिशला राणी उदर हंस, हेमवान अनूप... २ जीवित बहोंतेर वर्षनुं अ, सात हाथ तनु मान, मानविजय वाचक करे, जिनवरना गुण गान... ३ 1. रूपविजयजी कृत चोवीशी श्री ऋषभदेव न [१] प्रथम नमुं श्री आदिनाथ, शत्रुंजय गिरि सोहे, नाभिराया मरुदेवी नंद, त्रिभुवन मन मोहे...१... लाख चोराशी वरस आयु, सुवर्ण सम काय, राणी सुनंदा सुमंगला, तस कंत सोहाय...२... लंछन वृषभ विराजतो अ, धनुष पांचसो देह, विनीता नगरीनो धणी, रूप कहे गुणगेह...३... For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003635
Book TitleChaityavandan Chauvisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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