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आमुख
सामायिक के चार अनुयोग द्वार हैं। उनमें पहला है उपक्रम । आवश्यक, श्रुत और स्कन्ध के चार-चार निक्षेप किए गए हैं । उपक्रम के छः निक्षेप निदर्शित हैं । क्षेत्र और काल ये दो पूर्व-पद्धति से अतिरिक्त हैं।
शास्त्र से परिचित होने के लिए उपक्रम अथवा उपोद्घात आवश्यक होता है । अनुयोग द्वार के लिए प्रशस्त भावों का उपक्रम आवश्यक है । प्रशस्त भावोपक्रम की प्रत्यभिज्ञा के लिए नाम, स्थापना आदि निक्षेप पद्धति का प्रयोग बहुत अपेक्षित है। कालोपक्रम में नाडिका का उल्लेख है । आर्यरक्षित के समय में यान्त्रिक घड़ियां नहीं होती थीं। उस समय कालमान के लिए रेत अथवा पानी की नाडिका (घड़ी) का प्रयोग होता था। उपक्रम-विधि के पश्चात् निक्षेप-विधि का प्रयोग होता है। अनुयोग द्वार का प्रथम अङ्ग उपक्रम बतलाया गया है। उपक्रम को अनुयोग द्वार के प्रवेश के समकक्ष माना जा सकता है।
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