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आमुख
में
प्रस्तुत प्रकरण श्रुत और स्कन्ध के निक्षेप बतलाए गए हैं। वैकल्पिक रूप में श्रुत के अण्डज आदि (सू० ४०) पांच प्रकार निर्दिष्ट हैं। ये सूत्र के पांच प्रकार हैं। सुय और सुत्त दोनों पर्यायवाची हैं ( सू० ५१) । सुय और सुत्त की एकता को स्वीकार कर यह विकल्प प्रस्तुत किया गया है। प्राकृत भाषा में सुत्त का सुय रूप निष्पन्न हो सकता है इसलिए सुय और सुत्त में एकता मानी गई है ।
आवश्यक एक श्रुत स्कन्ध है ( सू० २-६) । सूत्र ७ से २८ तक आवश्यक की जानकारी दी जा चुकी है। प्रस्तुत प्रकरण में श्रुत और स्कन्ध के निक्षेप की जानकारी दी जा रही है।
सूत्रकार ने लौकिक भावत में कनकसप्तति (सांख्यकारिका) बादि का संग्रह भावश्रुत ( सू० ६७) में किया गया है। महाभारत और रामायण ये वस्तुतः लौकिक शास्त्र हैं लौकिक शास्त्र नहीं हैं, फिर भी सूत्रकार ने उनकी पृथक् विवक्षा नहीं की, उनका लौकिक आगम में ही समावेश किया है ।
किया है। नन्दी में इनका संग्रह मिथ्याभूत (द्रष्टव्य सू० ५४८ ) किन्तु कनकसप्तति आदि
निक्षेप पद्धति में एक शब्द की अनेक सन्दर्भों में जानकारी मिलती है । हय-स्कन्ध, द्विप्रदेशी-स्कन्ध, सेना का स्वन्ध और श्रुत का स्कन्ध-ये भिन्न सन्दर्भ हैं । इन भिन्न सन्दर्भों में स्कन्ध पद का प्रयोग विशेष विशेषण के साथ होता है और विशिष्ट अर्थ की जानकारी देता है । इसके अध्ययन से ग्रंथकार के मौलिक प्रतिपाद्य तक पहुंचने की स्थिति निर्मित होती है ।
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