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________________ परिशिष्ट : ७ जोड़: पद्यात्मक व्याख्या कझे ते समुच्चय वचन मा संदेह युक्त विध्य पूर्ण अंगबाहिर त के भेद तेनुं प्रश्न करें छे । ४०. जो अंग बाह्य श्रुत नों अवधार, उद्देशादि प्रवर्त्ते सार । स्यूं कालिक नां प्रवर्त्ती उद्देशादि, के उत्कालिक तणां संवादि ? ॥ सोरठा दिवस अनं वलि रात्रि नं। चरम पहर कीजै वली ॥ द्वादश अंग समय वली । प्रहरे पीये ४१. कालिक जे कहिवाय प्रथम पहर स्वाध्याय, ४२. उत्तराध्ययन सु आदि, ए कालिक संवादि प्रथम चरम ४३. अकाल मात्र' वजह, सर्व काल ते उत्कालिक लेह, दशवैकालिक' पढे ।। जसं । आदि दे || (लय सोही सयाणा) ४४. ए पुण प्रस्थापन आथित्त, कालिक नौ तौ प्रश्न न कथित उत्कालिक नौं प्रश्न करेह, आगल कहिये छे वच जेह ॥ । वा० - इमं पुण पट्टवणं पटुच्च ए वली प्रस्थापन प्रारंभ आश्रयी उत्कालिक औ जाणवूं । आवश्यक हीज इहां कहिस्यै ते उत्कालिक हीज छै इसी हृदय । उत्कालिक नौं इम सामान्य वचने कह्यो । वलि विशेष जाणवा नी इच्छाई शिष्य पूछे। (जय सोही समाना) ४५. जो उत्कालिक नां उद्देशा आदि तो स्यूं आवश्यक नां वादि । आवश्यक व्यतिरिक्त नों जाण, वर व्याख्यान प्रवर्त्ते माण ।। ४६. गुरु कहै आवश्यक नों जान, प्रवर्त्त अनुयोग व्याख्यान । आवश्यक व्यतिरिक्त तूं पिण ही, प्रवर्त्ते अनुयोग सुगुण ही ॥ ४७. ए पुण प्रस्थापन आश्रित्त, आवश्यक व्यतिरिक्त न कथित्त । आवश्यक प्रश्न करेह, सांभलजो श्रोता चित देह || aro -' इमं पुण पट्टवणं पटुच्च आवस्सयस्स अणुओगो' ए पुण प्रस्थापन कहिये प्रारंभण तेह प्रति आश्रयी नै आवश्यक नों अणुओग व्याख्यान छे इम गुरु कये छते शिष्य प्रश्न पूछे छै । ( सय सोही समाचा) 1 ४८. जो आवश्यक नों छै अनुयोग, तो आवश्यक स्यूं इक अंग जोग बहुअंगध एक, कै आवश्यक बहुश्रुत खंध पेख ? Jain Education International १. विकाल बेला । २. वृत्ति में 'आवश्यकादि' है। हो सकता है जयाचार्य को प्राप्त आदर्श में 'दशवेकालिकादि' रहा हो । ४०. जगाहिरस्स उसो समुद्देशो अणुष्णा अणुओोगो पत्त, कि कालियरस उद्देयो समृद्देसो अनुमा अणुओगी व पवत ? उनकालियरम उद्देगो समु अण्णा अणुओगो य पवत्तइ ? ४२३ ४१, ४२. तत्र दिवस निशा प्रथमचरमपौरुषी लक्षणे कालेऽधीयते नान्यत्रेति कालिक-उत्तराध्ययनादि । (बु.प. ५) ४३. यत्तु कालवेलामत्रवर्ज शेषकालानियमेन पठ्यते तत्कालिक (बु.प. ६) आवश्यकादि ४४. इमं पुण पट्टवणं पडुच्च उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अण्णा अणुओगो य पवत्तइ । (सू. ४) For Private & Personal Use Only वा० - इदं पुनः प्रस्तुतं प्रस्थापनं प्रारम्भं प्रतीत्य उत्कालिकस्वामी मन्तव्य: आवश्यकमेव ह्यत्र व्याख्यास्यते, तत्कालिनमेवेति हृदयम् उत्कालिक स्येति सामान्यवचने विशेषजिज्ञासुः पृच्छति (बृ. प. ५) ४५ जइ उक्कानियस्स उद्देश समुद्देशो जष्णा अणुओगां पवत्त, कि आवस्यस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगीय पवत आवस्यतिरिक्तस्स उसो समुद्देसो अणुष्णा अणुओय पवत्त ? ४६. आवस्सयस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुष्णा अणुओगो य पाइ आवस्यतिरिक्तस्स वि उसी समृद्देस अण्णा अणुओगो य पवत्तइ । ४७. इमं पुण पट्टवणं पडुच्च आवस्सयस्स अणुओगो । (सु. ५) ४८ जइ आवस्सयस्स अणुओगो, आवस्सयण्णं किं अंगं ? अंगाई ? सुवधी ?? www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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