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________________ आमुख अनुयोगद्वार व्याख्या पद्धति का सूत्र है । संघदासगणी ने व्याख्या पद्धति का प्रथम अङ्ग नन्दी बतलाया है । नन्दी पंच ज्ञानात्मक होती है ।' प्रस्तुत सूत्र का प्रारम्भ पांच ज्ञान से ही होता है । सूत्रकार ने चार ज्ञान स्थाप्य हैं, हमारा सारा व्यवहार श्रुतज्ञान से चलता है - यह प्रतिपादित कर शब्द और ज्ञान के सम्बन्ध की पृष्ठभूमि प्रस्तुत की है । अध्ययन, अध्यापन आदि सब श्रुतज्ञान के इसलिए प्रस्तुत सूत्र में श्रुतज्ञान का प्रतिपादन है। जैन दृष्टि से श्रुतज्ञान के दो । अंग बाह्य के दो विभाग किए गए हैं-कालिक और उत्कालिक । उत्कालिक क्षेत्र में होते हैं । व्याख्या भी श्रुतज्ञान का विषय है विभाग किए गए हैं - १. अंग प्रविष्ट २. अंग बाह्य का प्रथम विभाग है- आवश्यक । प्रस्तुत प्रकरण में आवश्यक को निक्षेप पद्धति से समझाया गया है । प्रकरणवश निक्षेप का नियम भी प्रदर्शित है। अभिलषित वस्तु तक पहुंचने के लिए निक्षेप पद्धति बहुत उपयोगी है। इस संश्लेषात्मक जगत् में विश्लेषणात्मक पद्धति का उपयोग किए बिना अभिलषित वस्तु तक पहुंच नहीं सकते । इसलिए जैन आचार्यों ने निक्षेप पद्धति का विकास किया है। प्रस्तुत प्रकरण में उसे सहज सरलता के साथ बतलाया गया है । १. वृभा १ पृ. ३ : नंदी य मंगलट्ठा, पंचग दुग तिग दुगे य चोट्सए । अंगगयमणंगगए, कायध्व परूवणा पगयं ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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