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तेरहवां प्रकरण : सूत्र ६२४-६३१
३५६ पयं आघवियं पण्णवियं परूवियं उपदशितम् । यथा को दृष्टान्त: ? किया है। जैसे-कोई दृष्टान्त है ? [आचार्य दंसियं निदंसियं उवदंसियं । जहा अयं मधुकुम्भः आसीत्, अयं घृतकुम्भ: ने कहा- इसका दृष्टान्त यह है] यह मधुघट को दिळंतो? अयं महुकुंभे आसी, आसीत् । तदेतद् ज्ञशरीरद्रव्या- था, यह घृतघट था। वह ज्ञशरीर द्रव्य अयं घयकंभे आसी। से तं जाणग- ध्ययनम् ।
अध्ययन है। सरीरदब्वज्झयणे ॥ ६२७. से कि तं भवियसरीरदब्व- अथ कि तद् भव्यशरीरद्रव्याध्यय- ६२७. वह भव्यशरीर द्रव्य अध्ययन क्या है ?
भयणे? भवियसरीरदव्वज्झयणे नम् ? भव्यशरीरद्रव्याध्ययनम-यो भव्यशरीर द्रव्य अध्ययन गर्भ की पूर्णावधि -जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खंते जीवो योनिजन्मनिष्क्रान्तः अनेन चैव से निकला हुआ जो जीव इस प्राप्त पौद्गलिक इमेणं चेव आदत्तएणं सरीर- आदत्तकेन शरीरसमुच्छयेण जिनदिण्टेन शरीर से अध्ययन इस पद को जिन द्वारा समुस्सएणं जिणदिट्टेणं भावेणं भावेन अध्ययनम् इति पदम् एष्यत्- उपदिष्ट भाव के अनुसार भविष्य में सीखेगा, अज्झयणे ति पयं सेयकाले काले शिक्षिष्यते, न तावत् शिक्षते । वर्तमान में नहीं सीखता है तब तक वह भव्यसिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ। यथा कः दृष्टान्तः ? अयं मधुकुम्भः शरीर द्रव्य अध्ययन है । जैसे कोई दृष्टान्त जहा को दिळंतो? अयं महकंभे
भविष्यति, अयं घृतकुम्भः भविष्यति । है ? [आचार्य ने कहा-इसका दृष्टान्त यह भविस्सइ, अयं घयकभे भविस्सइ। तदतद् भव्यशरारद्रव्याध्ययनम् । है] यह मधुघट होगा, यह घृतघट होगा। वह से तं भवियसरीरदव्वज्झयणे ।।
भव्यशरीर द्रव्य अध्ययन है। ६२८. से कि तं जाणगसरीर-भविय- अथ किं तद् ज्ञशरीर-भव्यशरीर- ६२८. वह ज्ञशरीर भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य
सरीर-वतिरित्ते दव्वज्झयणे? व्यतिरिक्तं द्रव्याध्ययनम् ? ज्ञशरीर- अध्ययन क्या है ? जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते __भव्यशरीर-व्यतिरिक्तं द्रव्याध्ययनम् - ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य दव्वज्झयणे-पत्तय-पोत्थय- पत्रक-पुस्तक-लिखितम् । तदेतद् अध्ययन-पत्र और पुस्तकों में लिखित लिहियं । सेतं जाणगसरीर-भविय- ज्ञशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्तं द्रव्या- अध्ययन । वह ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त सरीर-वतिरित्ते दव्वज्झयणे। से ध्ययनम् । तदेतद् नोआगमतो द्रव्या- द्रव्य अध्ययन है। वह नोआगमतः द्रव्य तं नोआगमओ दवज्झयणे। से ध्ययनम् । तदेतद् द्रव्याध्ययनम् । अध्ययन है। वह द्रव्य अध्ययन है। तं दवज्झयणे॥
६२६. से कि तं भावज्झयणे? अथ किं तद् भावाध्ययनम् ?
भावज्झयणे दुविहे पण्णते, तं भावाध्ययनं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथाजहा-आगमओ य नोआगमओ आगमतश्च नोआगमतश्च ।
६२९. वह भाव अध्ययन क्या है ?
भाव अध्ययन के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-आगमतः और नोआगमतः ।
६३०.से कि तं आगमओ भावज्झयणे? अथ कि तद् आगमतो भावाध्ययनम्। ६३०. वह आगमतः भाव अध्ययन क्या है? आगमओ भावज्झयणे-जाणए आगमतो भावाध्ययनम् ज्ञः उप
आगमत: भाव अध्ययन-जो जानता है उवउत्ते। से तं आगमओ युक्तः। तदेतद् आगमतो भावा
और उसके अर्थ में उपयुक्त है। वह आगमतः भावज्झयणे ॥ ध्ययनम् ।
भाव अध्ययन है।
६३१. से कि तं नोआगमओ भाव
अथ कि तद् नोआगमतो भावा- ६३१. वह नोआगमतः भाव अध्ययन क्या है ? ज्झयणे ? नोआगमओ भाव- ध्ययनम् ? नोआगमतो भावाध्यय
नोआगमतः भाव अध्ययनज्झयणेगाहागाथा
गाथाअज्झप्पस्साणयणं, अध्यात्मस्यानयनं,
जिससे अध्यात्म [चित्त] का आनयन होता कम्माणं अवचओ उवचियाणं ।
कर्मणामपचयः उपचितानाम् । है, पूर्व संचित कर्म क्षीण होते हैं और नए अणुवचओ य नवाणं, अनुपचयश्च नवानां,
कर्मों का संचय नहीं होता इसलिए आचार्य तम्हा अज्झयणमिच्छति ॥१॥ तस्मादध्ययनमिच्छन्ति ।।१।। को उसे अध्ययन कहना इष्ट है। वह
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