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________________ तेरहवां प्रकरण मूल पाठ सस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद निक्खेवाणुओगदार-पदं निक्षेपानुयोगद्वार-पदम् निक्षेप अनुयोगद्वार-पद ६१८. से कि त निक्खेवे ? निक्खेवे अथ किं स निक्षेपः? निक्षेपः ६१८. बह निक्षेप क्या है ? तिविहे पण्णत्ते, तं जहा ओह- त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-ओघनिष्पन्नः निक्षेप के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे - निप्फण्णे नामनिष्फण्णे सुत्तालावग- नामनिष्पन्नः सूत्रालापकनिष्पन्नः । ओघ निष्पन्न, नाम निष्पन्न और सूत्रालापक निष्फण्णे ॥ निष्पन्न । निक्खेवाणओगदारे ओहनिष्फण्ण-पदं निक्षेपानुयोगद्वारे ओघनिष्पन्न- निक्षेप अनुयोगद्वार ओघनिष्पन्न-पद पदम् ६१६. से किं तं ओहनिष्फण्णे? ओह- अथ कि स ओघनिष्पन्नः ? ओघ- ६१९. वह ओघ निष्पन्न निक्षेप क्या है ? निप्फण्णे चउम्बिहे पण्णत्ते, तं निष्पन्नश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा ओघ निष्पन्न निक्षेप के चार प्रकार प्रज्ञप्त जहा--अज्झयणे अज्झीणे आए अध्ययनम् अक्षीणम् आय: क्षपणा। हैं, जैसे-अध्ययन, अक्षीण, आय और झवणा ॥ क्षपणा। ६२०. से कि तं अज्झयणे? अज्झयणे अय किं तद् अध्ययनम् ? अध्ययनं ६२०. वह अध्ययन क्या है ? चउविहे पण्णते, तं जहा- चतुर्विधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-नामाध्ययनं अध्ययन के चार प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेनामज्झयणे ठवणज्झयणे दव्व- स्थापनाध्ययनं द्रव्याध्ययनं भावा नाम अध्ययन, स्थापना अध्ययन, द्रव्य ज्झयणे भावज्झयणे॥ ध्ययनम् । अध्ययन और भाव अध्ययन । ६२१. नाम-दृवणाओ गयाओ॥ नाम-स्थापने गते। ६२१. नाम स्थापना पूर्ववत् ज्ञातव्य हैं। [देखे सू. ९-११] । ६२२. से कि तं दवज्झयणे? दव- अथ कि तद् द्रव्याध्ययनम् ? ६२२. वह द्रव्य अध्ययन क्या है ? ज्झयणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा- द्रव्याध्ययनं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा - ___ द्रव्य अध्ययन के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, आगमओ य नोआगमओय॥ आगमतश्च नोआगमतश्च । जैसे—आगमत और नोआगमतः । ६२३. से कि तं आगमओ दब्वज्झयणे? अथ किं तद् आगमतो द्रव्याध्यय- ६२३. वह आगमतः द्रव्य अध्ययन क्या है? आगमओ दब्यज्झयणे-जस्स णं नम्? आगमतो द्रव्याध्ययनम् .. यस्य आगमतः द्रव्य अध्ययन --जिसने अध्ययन अज्झयणे ति पदं सिक्खियं ठियं अध्ययनम् इति पदं शिक्षितं स्थितं यह पद सीख लिया, स्थिर कर लिया, चित जियं मियं परिजियं नामसमं घोस- चितं मितं परिचितं नामसमं घोष- कर लिया, मित कर लिया, परिचित कर समं अहीणक्खरं अणच्चक्खरं समम् अहीनाक्षरम् अनत्यक्षरम् लिया, नामसम कर लिया, घोषसम कर अम्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अव्याविद्धाक्षरम् अस्खलितम् लिया, जिसे वह होन, अधिक या विपर्यस्त अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुण्ण- अमीलितम् अव्यत्यानंडितं प्रतिपूर्ण अक्षर रहित, अस्खलित, अन्य वर्णों से घोसं कंठोढविप्पमुक्कं गुरुवायणो- प्रतिपूर्णघोषं कण्ठोष्ठविप्रमुक्तं गुरु- अमिश्रित, अन्य ग्रन्थों के वाक्यों से अमिश्रित, वगयं, से णं तत्थ वायणाए वाचनोपगतं, तत् तत्र वाचनया प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्ण घोषयुक्त, कण्ठ और होठ से पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, प्रच्छनया परिवर्तनया धर्मकथया, नो निकला हुआ तथा गुरु की वाचना से प्राप्त नो अणुप्पेहाए। कम्हा? अणुव- अनुप्रेक्षया । कस्मात् ? अनुपयोगो है। वह उस [अध्ययन पद] के अध्यापन, प्रश्न, ओगो दवमिति कटु ॥ द्रव्यमिति कृत्वा। परावर्तन और धर्म कथा में प्रवृत्त आगमतः Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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