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आमुख
प्रस्तुत प्रकरण में वक्तव्यता पर नय दृष्टि से विचार किया गया है। प्रत्येक विषय पर नय दृष्टि से विचार करना दृष्टिवाद की अपनी विशेषता है । अनुयोगद्वार दृष्टिवाद का व्याख्यासूत्र है । इसलिए आर्यरक्षित ने यथावकाश नय का प्रयोग किया है। समवतार की प्रक्रिया में संकोच और विस्तार का सुन्दर निदर्शन है । भाव जगत् में सबसे अधिक अभिव्यक्त होने वाला भाव है क्रोध । क्रोध का समवतार मान में होता है, उसका अन्तिम छोर द्रव्य में हो जाता है। विस्तार के कोण से चले तो द्रव्य का एक विभाग है जीवास्तिकाय । जीवास्तिकाय का एक जीव, उसका अन्तिम छोर है क्रोध । इसके आधार पर भाव जगत् की प्रक्रिया का गहन अध्ययन किया जा सकता है ।
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